आनंद आशुलिपि मासिक पत्रिका डिक्टेशन #05 [ 100 Wpm ]
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पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां // कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते // हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों // व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, // जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है // और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी // की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के // भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। // इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल // सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि // उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने // सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप // आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा // था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण // के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी // सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी // की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने // सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
[ -- आनंद आशुलिपि मासिक पत्रिका डिक्टेशन #05 -- ]
70 शब्द प्रतिमिनट
सभापति महोदय, गत और आगत वर्षों की संधिवेला के आसपास इस वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री और देश के प्रमुख वैज्ञानिकों का यह मिलने एक तरह से प्रतीकात्मक है। यह इस बात का स्मरण कराता है कि राजनीति और विज्ञान को कंधे से कंधा मिलकाकर चलना चाहिए। हम एक नए दशक में प्रवेश कर रहे हैं। मैं आशा करती हूं कि यह सातवां दशक एक प्रकार से निर्णायक विकास का दशक // होगा और ऐसा दशक होगा कि जिसमें हम आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त कर लेंगे।पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां // कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते // हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों // व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, // जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
80 शब्द प्रतिमिनट
सभापति महोदय, गत और आगत वर्षों की संधिवेला के आसपास इस वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री और देश के प्रमुख वैज्ञानिकों का यह मिलने एक तरह से प्रतीकात्मक है। यह इस बात का स्मरण कराता है कि राजनीति और विज्ञान को कंधे से कंधा मिलकाकर चलना चाहिए। हम एक नए दशक में प्रवेश कर रहे हैं। मैं आशा करती हूं कि यह सातवां दशक एक प्रकार से निर्णायक विकास का दशक होगा और ऐसा दशक होगा कि जिसमें हम आर्थिक स्वावलंबन // प्राप्त कर लेंगे।पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है // और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी // की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के // भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
90 शब्द प्रतिमिनट
सभापति महोदय, गत और आगत वर्षों की संधिवेला के आसपास इस वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री और देश के प्रमुख वैज्ञानिकों का यह मिलने एक तरह से प्रतीकात्मक है। यह इस बात का स्मरण कराता है कि राजनीति और विज्ञान को कंधे से कंधा मिलकाकर चलना चाहिए। हम एक नए दशक में प्रवेश कर रहे हैं। मैं आशा करती हूं कि यह सातवां दशक एक प्रकार से निर्णायक विकास का दशक होगा और ऐसा दशक होगा कि जिसमें हम आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त कर लेंगे।पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। // इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल // सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि // उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने // सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
100 शब्द प्रतिमिनट
सभापति महोदय, गत और आगत वर्षों की संधिवेला के आसपास इस वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री और देश के प्रमुख वैज्ञानिकों का यह मिलने एक तरह से प्रतीकात्मक है। यह इस बात का स्मरण कराता है कि राजनीति और विज्ञान को कंधे से कंधा मिलकाकर चलना चाहिए। हम एक नए दशक में प्रवेश कर रहे हैं। मैं आशा करती हूं कि यह सातवां दशक एक प्रकार से निर्णायक विकास का दशक होगा और ऐसा दशक होगा कि जिसमें हम आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त कर लेंगे।पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप // आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा // था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण // के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
120 शब्द प्रतिमिनट
सभापति महोदय, गत और आगत वर्षों की संधिवेला के आसपास इस वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री और देश के प्रमुख वैज्ञानिकों का यह मिलने एक तरह से प्रतीकात्मक है। यह इस बात का स्मरण कराता है कि राजनीति और विज्ञान को कंधे से कंधा मिलकाकर चलना चाहिए। हम एक नए दशक में प्रवेश कर रहे हैं। मैं आशा करती हूं कि यह सातवां दशक एक प्रकार से निर्णायक विकास का दशक होगा और ऐसा दशक होगा कि जिसमें हम आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त कर लेंगे।पिछले कुछ महीने काफी उत्तेजनात्मक रहे हैं। इनमें तेजी से और नाटकीय घटनाएं हुई हैं। इसके परिणामस्वरूप आप देखेंगेकि हर तरफ बढ़ती आकांक्षाओं का वातावरण बना है। लोग चाहते हैं कि काम तत्काल हो और नतीजे जल्दी // सामने आएं। हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी जगह पहुंच गई है जहां से आगे अधिक तेजी से बढ़ा जा सकता है। हां कोई जादुई हल नहीं हो सकता, किंतु इसमें भी संदेह नहीं कि परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी हो सकती है और यह बहुत आवश्यक भी है। हम काम करने के तौर-तरीकों को प्रशासन में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके बदल सकते हैं। 1958 में पंडित जवाहर लाल नहेरू ने देशवासियों के लिए वे सारे लाभ पहुंचाने हेतु एक प्रस्ताव रखा था जो ज्ञान-विज्ञान के प्रापत प्रयोग से अर्जित हो सकते हैं। इससे सरकार और हमारे वैज्ञानिकों पर एक विशेष दायित्व आ गया है।
हम विज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते हैं आधुनिकीकरण का अर्थ केवल उन्नत प्रौद्योगिकी // की सहायता से अधिक उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ है व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में परिवर्तन। विज्ञान का वितरण से भी उतना ही संबंध है जितना कि उत्पादन से। इसमें निहित है भौतिक और मानवीय साधनों, यंत्रों व सामाजिक संगठन का अच्छा-से-अच्छा उपयोग, ताकि जनहित के कामों का अधिक-से-अधिक लोगों को लाभ पहुंचे। वैसे तो मानव कल्याण के लिए राष्ट्रों की सीमाएं नहीं होनी चाहिए लेकिन आज संसार की जो रचना है, उसमें हमें इन्हीं सीमाओं के भीतर सोचना पड़ता है कि सरकारें अपनी-अपनी जनता के लिए क्या कर सकती हैं। फिर भी हमारी शहरी आबादी के एक वर्ग को छोड़कर हमारा समाज प्रायः वैसा ही है, जैसा प्रौद्योगिक विकास से पहले था। जब तक हम अपने // सामाजिक परिवर्तन की गति नहीं बढ़ाते तब तक हमारे वैज्ञानिक प्रयास समाज के छोरों को ही छू पाएंगे और देश बहुत पीछे रह जाएगा।
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