मासिक पत्रिका Dictation #02 | REPUBLIC STENO

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Hindi Translation
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मासिक पत्रिका )


  आदरणीय महोदय, अशिक्षा, गरीबी और भूख भी दुनिया के उन हिस्सों में अधिक है जो लंबे समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि साम्राज्यवादी देश गुलाम देशों के प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों का दोहन अपने हितों के पोषण के लिए करते रहे। इससे वे निरंतर धनवान तथा विकसित होते गए। दूसरी ओर गुलाम देश शिक्षा, संस्कृति और उद्योग सभी क्षेत्रों में पिछड़ते गए।
      हमारा देश भारत भी एक लंबे समय तक साम्राज्यवाद का शिकार और गुलाम रहा है। एक जमाने में दुनिया का यह सर्वाधिक विकसित देश इस काल में पिछड़ेपन, अशिक्षा, गरीबी और भुखमरी के कगार पर पहुंच गया, किंतु भारतीयों की आंतरिक जीवन क्षमता, स्वतंत्रता की अदम्य आकांक्षा और संघर्ष करने की क्षमता ने बीसवीं शताब्दी के मध्य में उसके लिए स्वतंत्रता के द्वार खोले और उसे प्रभुसत्ता संपन्न गणराज्य के रूप में अपने विकास का अवसर मिला।






        स्वतंत्र भारत को अपने शैशव से ही जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा उनमें अन्य समस्याओं के साथ गरीबी और अशिक्षा सबसे महत्वपूर्ण थे। प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों से पूर्ण यह देश स्वतंत्रता के बाद अपने निर्माण में लगा। हमारा उद्देश्य था - समतावादी समाज की स्थापना द्वारा देश को आर्थिक प्रगति की राह पर आगे बढ़ाना। अज्ञान और निरक्षरता इस राह की सबसे बड़ी बाधाएं थीं। आज भी हमारे देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है। ग्रामीण जीवन में निरक्षरता, अज्ञान और सामाजिक विषमता सबसे बड़े अभिशाप हैं। भारत के कर्णधारों ने प्रारंभ में ही इस तथ्य को पहचान लिया था और समझ गए थे कि सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास व समता मूलक समाज की स्थापना एवं उन्नति के लिए आवश्यक है कि हम अज्ञान और निरक्षरता के विरुद्ध एक अभियान छेड़ें। उसके बिना न तो नागरिकों में नई चेतना जागृत की जा सकती है और न ही जीवन और जगत के प्रति उनके सोच को बदला जा सकता है। समस्याओं के विश्लेषण अपने अधिकारों और कर्तव्यों की जानकारी, समाज के प्रति लगाव और दायित्व का बोध, अपने इतिहास और संस्कृति की विरासत के प्रति मोह, देश प्रेम और राष्ट्रीय एकता की भावना और इनसे भी अधिक अज्ञानता, गरीबी और भूख के विरुद्ध कोई भी देश या जाति तब तक पूर्णतः तैयार नहीं हो सकती जब तक उसमें शिक्षा का विकास न हो। शिक्षा व्यक्ति के ज्ञान को खोलती है और उसके भीतर ऐसी चेतना का प्रादुर्भाव होता है जो करणीय एवं अकरणीय का अंतर उसे समझाती है। सामाजिक बर्बरता से संघर्ष करने का साहस देती है। इतना ही नहीं निरक्षरता इंसानों को बांटती है जबकि साक्षरता एक दूसरे को नजदीक लाती है। अपने हितों के विश्लेषण की क्षमता साक्षरता से ही विकसित होती है। सच तो यह है कि अशिक्षा अर्थात निरक्षरता अभिशाप है - एक मायने में गरीबी से भी अधिक बड़ा क्योंकि गरीबी आमतौर पर निरक्षरता के कारण ही पैदा होती है।


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