आनंद आशुलिपि मासिक पत्रिका Dictation #03
Hindi Translation
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[ -- आनंद मासिक पत्रिका #03 -- ]
महोदय, गुलामी का एक कारण निरक्षरता है, क्योंकि निरक्षर, अज्ञान और अशिष्टता के कारण स्थिति और परिस्थितियों का आकलन करने में असफल रहता है। परिणामस्वरूप दूसरों की चाकरी करना उसकी नियति बन जाती है। यह बात व्यक्ति, समाज और देश सभी पर लागू होती है। निरक्षरता व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकती है। आत्म विश्वास को काटती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति पिछड़ने लगता है। दुनिया में आज जो देश और समाज पिछड़े हैं, वहां निरक्षरों का अनुपात बहुत अधिक है।
साक्षरता मनुष्य के लिए वरदान है। यह व्यक्तिगत और सामाजिक बंधनों से छुटकारा पाने का ही साधन नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव का वाहक भी है। साक्षरता का अभिप्राय कुछ शब्दों को पढ़ना-लिखना, जान लेना भर नहीं है। वह ज्ञान लोक की कुंजी है। साक्षरता ज्ञान के प्रति जिज्ञासा को प्रबल करती है। इसके कारण ही दुनिया के रहस्यों को जानने-समझने की आकांक्षा बलवती होती है। देश और समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती है। इससे कुछ ऐसा बुनियादी कौशल विकसित होता है, जो व्यक्ति को जड़ता के विरुद्ध तेजस्विता प्रदान करता है। कुल मिलाकर साक्षरता व्यक्ति को सजग व जागरूक बना कर उसमें आत्मविश्वास पैदा करती है, उसे मजबूत व समर्थ बनाती है। इसलिए यह कहना सारगर्भित होगा कि साक्षरता न केवल व्यक्ति के लिए अनिवार्य है, बल्कि समाज व देश के लिए भी क्योंकि साक्षर व्यक्ति ही देश के विकास में कारगर भूमिका निभा सकता है। स्पष्ट है कि साक्षरता मानव के विकास का आवश्यक अंग है। यह अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने, नई बातें सीखने, ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण साधन है। इसलिए साक्षरता व्यक्ति की उन्नति एवं राष्ट्र के विकास की पहली शर्त है।
[ -- आनंद मासिक पत्रिका #03 -- ]
महोदय, गुलामी का एक कारण निरक्षरता है, क्योंकि निरक्षर, अज्ञान और अशिष्टता के कारण स्थिति और परिस्थितियों का आकलन करने में असफल रहता है। परिणामस्वरूप दूसरों की चाकरी करना उसकी नियति बन जाती है। यह बात व्यक्ति, समाज और देश सभी पर लागू होती है। निरक्षरता व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकती है। आत्म विश्वास को काटती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति पिछड़ने लगता है। दुनिया में आज जो देश और समाज पिछड़े हैं, वहां निरक्षरों का अनुपात बहुत अधिक है।
साक्षरता मनुष्य के लिए वरदान है। यह व्यक्तिगत और सामाजिक बंधनों से छुटकारा पाने का ही साधन नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव का वाहक भी है। साक्षरता का अभिप्राय कुछ शब्दों को पढ़ना-लिखना, जान लेना भर नहीं है। वह ज्ञान लोक की कुंजी है। साक्षरता ज्ञान के प्रति जिज्ञासा को प्रबल करती है। इसके कारण ही दुनिया के रहस्यों को जानने-समझने की आकांक्षा बलवती होती है। देश और समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती है। इससे कुछ ऐसा बुनियादी कौशल विकसित होता है, जो व्यक्ति को जड़ता के विरुद्ध तेजस्विता प्रदान करता है। कुल मिलाकर साक्षरता व्यक्ति को सजग व जागरूक बना कर उसमें आत्मविश्वास पैदा करती है, उसे मजबूत व समर्थ बनाती है। इसलिए यह कहना सारगर्भित होगा कि साक्षरता न केवल व्यक्ति के लिए अनिवार्य है, बल्कि समाज व देश के लिए भी क्योंकि साक्षर व्यक्ति ही देश के विकास में कारगर भूमिका निभा सकता है। स्पष्ट है कि साक्षरता मानव के विकास का आवश्यक अंग है। यह अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने, नई बातें सीखने, ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण साधन है। इसलिए साक्षरता व्यक्ति की उन्नति एवं राष्ट्र के विकास की पहली शर्त है।
आज हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं। दुनिया के अधिकतर देश नई सदी में नए विश्वास और संभावनाओं के साथ प्रवेश कर गए हैं जबकि हमारे पास है करोड़ों निरक्षरों की विशाल फौज। वर्तमान स्थिति के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि हमारे देश में निरक्षरों की जो लंबी कतार है, वह जनसंख्या बढ़ने के साथ साथ और लंबी होती जाएगी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुई जनगणना अर्थात 1951 में साक्षरता दर 16 प्रतिशत थी जो वर्ष 1991 में बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई। इसमें पुरुषों का शिक्षा अनुपात 63 प्रतिशत था महिलाओं का शिक्षा अनुपात 39 प्रतिशत है। यह एक अजीब विडंबना है कि साक्षरता की दर में वृद्धि के बावजूद निरक्षरों की संख्या में अनियंत्रित गति से वृद्धि हो रही है। 1951 के आंकड़ों के अनुसार उस समय देश में 17 करोड़ निरक्षर थे। यदि जनसंख्या वृद्धि और साक्षरता प्रसार की दर में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं हुआ तो सन 2002 तक भारत में 50 करोड़ लोग निरक्षर होंगे। विश्व बैंक की एक चर्चित रिपोर्ट के अनुसार उस वर्ष 15 से 19 वर्ष के आयु वर्ग में विश्व की कुल निरक्षर जनसंख्या का 54 प्रतिशत भाग भारत में होगा।
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