आनंद आशुलिपि मासिक पत्रिका Dictation #04 (80 Wpm) | REPUBLIC STENO

आनंद आशुलिपि मासिक पत्रिका Dictation #04 | REPUBLIC STENO




Hindi Translation
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 [ --  आनंद मासिक पत्रिका  -- ]



     महोदय, वह यह भी जानता है कि आस्था-विश्वास के अभाव में जीवन एक ऐसी भ्रात्मक स्थिति को प्राप्त होता है कि कोई भी उस पर विश्वास नहीं करता। इन सब परिस्थितियों के कारण सुसंस्कृत मनुष्य वास्तव में पूर्ण धार्मिक विश्वास और पूर्ण अविश्वास के बीच में स्थित रहकर अपना जीवन व्यतीत करता है। इस प्रकार का जीवन जीने वाले लोगों पर ही वासतव में सभ्य समाज अधिक निर्भर करता है, क्योंकि वे ही समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अधिक अनुभव करते हैं। इसके विपरीत संकीर्ण धार्मिक प्रवृत्ति के लोग अपने धार्मिक विश्वास को समाज के मुकाबले अधिक महत्व देते हैं, और पूर्ण अविश्वास का जीवन बिताने वाले अपने व्यक्तिगत हित और लाभ के लिए समाज और नैतिक मूल्यों की बलि लगाने से भी हिचकते नहीं। सुसंस्कृत मनुष्य का यह लक्षण होता है कि वह अपने जीवन में धर्म की सब इच्छाइयों को आत्मसात करते हुए भी धर्म के नाम पर झूठ, हिंसा बनावट तथा अन्य अर्थहीन तत्वों से दूर रहता है।




      यह बिना अंधविशस के भी संसार के गूढ़ रहस्य के पीछे किसी सत्ता का होना स्वीकार कर लेता है। परंतु इसके साथ यह नैतिक और मानवीय मूल्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। परंतु इसके साथ यह नैतिक और मानवीय मूल्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। यही कारण है कि केवल बौद्धिक और सांस्कृतिक रूप से विकसित मनुष्य न केवल समाज को सुदृढ़ आधार प्रदान करते हैं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और प्रगति की प्रक्रिया में भी उचित योगदान देते हैं। धन्य होते हैं वे समाज जिन में इस प्रकार के लोग जन्म लेते रहते हैं।

पूर्ण रूप से स्वतंत्र आत्मा को जन्म देना और विकसित करना संस्कृति का वास्तविक लक्ष्य है। सब प्रकार के पूर्वाग्रहों से मुक्त व्यक्ति कट्टरता और धार्मिक संकीर्णता से अपने को बचा सकता है। सुसंस्कृत मनुष्य केवल अपने विचारों के लिए जीता है, अतः उनके लिए बलिदान होना स्वीकार कर लेता है। इसलिए स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को नष्ट करने के किसी भी प्रयास को वह अक्षम्य अपराध मानता है। सामान्य अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मनुष्य स्वभाव में जो करता है, वह स्थायी आदत के रूप में विद्यमान है और उस पर काबू पाने के लिए वैचारिक स्तर पर निरंतर प्रशिक्षण आवश्यक होता है। मनुष्य अपनी सांस्कृतिक यात्रा की अवधि में हमेशा अपनी जन्मजात और स्थायी प्रवृत्तियों के साथ संघर्षरत रहा है। इसमें उसकी सफलता, उसकी सांस्कृतिक चेतना के विकास से ही निर्धारित होती रही है। हमारे इस विचार क्रम में दो मुख्य बातें उभर कर सामने आती हैं। पहली बात यह कि धर्म ने अज्ञात की ओर सम्मुख बाह्य अंतरिक्ष के उस स्थल को साफ और खुला छोड़ दिया है जिसकी ओर मनुष्य अपनी व्यक्तिगत खिड़की से झांक कर देख सकता है। यह एक दम अलग बात है कि वह स्थल उसको साफ दिख सकता है। दूसरी बात यह कि प्रेम और भावुकता से परिपूर्ण जीवन में जो आनंद पैदा होता है, वह इस पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा अक्षुण्ण रहेगा।

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2 Comments

  1. Sir ji मुझे आनंद मासिक पत्रिका मंगवानी है तो मै कैसे मंगवा सकता हूँ प्लीज़ आप मुझे बताने की कृपा करें

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  2. Aap hme btaa skte h aap ko kis tre ke dictation chya ।

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