HIGH COURT DICTATION #04 (80 Wpm) | REPUBLIC STANO
Hindi Translation
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[ -- कोर्ट स्किल टेस्ट के लिए अभ्यसास -- ]
जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी व्यक्ति को उपधारा 2 में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराता है और उसकी यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशान्ति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति ली जाए, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दण्डादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अधिक इतनी अवधि के लिए जितनी वह ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित, बन्धपत्र निष्पादित करे।
[ -- कोर्ट स्किल टेस्ट के लिए अभ्यसास -- ]
जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी व्यक्ति को उपधारा 2 में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराता है और उसकी यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशान्ति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति ली जाए, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दण्डादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अधिक इतनी अवधि के लिए जितनी वह ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित, बन्धपत्र निष्पादित करे।
मजिस्ट्रेट किसी पेश किए गए प्रतिभू को स्वीकार करने से इंकार कर सकता है या अपने द्वारा, या अपने पूर्ववर्ती द्वारा, इस अध्याय के अधीन पहले स्वीकार किए गए किसी प्रतिभू इस आधार पर स्वीकार कर सकता है कि ऐसा प्रतिभू बंधपत्र के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त है, परन्तु किसी ऐसे प्रतिभू को इस प्रकार स्वीकार करने से इनकार करने या उसे अस्वीकार करने के पहले वह प्रतिभू की उपयुक्तता के बारे में या तो स्वयं शपथ पर जांच करेगा या अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेट से ऐसी जांच और उसके बारे में रिपोर्ट करवाएगा। ऐसा मजिस्ट्रेट जांच करने के पहले प्रतिभू को और ऐसे व्यक्ति को, जिसने वह प्रतिभू पेश किया है, उचित सूचना देगा और जांच करने में अपने सामने दिए गए साक्ष्य के सार को अभिलिखित कर सकेगा। यदि मजिस्ट्रेट जांच करने के पहले प्रतिभू को और ऐसे व्यक्ति को, जिसने वह प्रतिभू पेश किया है, उचित सूचना देगा और जांच करने में अपने सामने दिए गए साक्ष्य के सार को अभिलिखित कर सकेगा। यदि मजिस्ट्रेट को अपने समक्ष या उपधारा 1 के अधीन प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे दिए गए साक्ष्य पर और ऐसे मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर, विचार करने के पश्चात समाधान हो जाता है कि वह प्रतिभू बंधपत्र के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है तो वह प्रतिभू को, यथास्थिति, स्वीकार करने से इनकार या उसे अस्वीकार करने का आदेश करेगा और ऐसा करने के लिए अपने कारण अभिलिखित करेगा, परंतु प्रतिभू को, जो पहले स्वीकार किया जा चुका है, अस्वीकार करने का आदेश देने के पहले मजिस्ट्रेट अपना समन या वारंट, जिसे वह ठीक समझे, जारी करेगा और उस व्यक्ति को, जिसके लिए प्रतिभू आबद्ध है, अपने समक्ष हाजिर कराएगा या बुलवाएगा।
यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति अपनी पत्नी का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का जो विवाहित पुत्री नहीं है, जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहां ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या अपने माता-पिता का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इनकार करता है तो प्रािम वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित हो जाने पर ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के भरण-पोषण के लिए ऐसी मासिक दर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे। परंतु मजिस्ट्रेट खण्ड ब में निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के पिता को निर्देश दे सकता है कि वह उस समय तक भत्ता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती है। यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी अवयस्क पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है।
यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति अपनी पत्नी का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का जो विवाहित पुत्री नहीं है, जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहां ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या अपने माता-पिता का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इनकार करता है तो प्रािम वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित हो जाने पर ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के भरण-पोषण के लिए ऐसी मासिक दर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे। परंतु मजिस्ट्रेट खण्ड ब में निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के पिता को निर्देश दे सकता है कि वह उस समय तक भत्ता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती है। यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी अवयस्क पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है।
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