Hindi News Paper Dictation #14 [ उन्मादी वायरस ]

Hindi News Paper Dictation #14 [ उन्मादी वायरस ]




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 [ --   उन्मादी वायरस   -- ]


   70 शब्द प्रतिमिनट

  महोदय, महाराष्ट्र में पालघर के गडचिंचले गांव में मांब लिंचिंग की घटना दो तरह के उन्मादी वायरस के रूप में उभर कर सामने आई है। पहला भीड़ का उन्माद जिसकी करतूत से यह शर्मनाक घटना हुई और दूसरा सोशल मीडिया के जरिए फैलाए जाने वाला वह उन्मादी वायरस, जिससे इस प्रकरण को सियासी व मजहबी रंग देने की कोशिशें भी होती दिख रही हैं। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से जो बयान दिया गया है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तक ने लाॅकडाउन खुलने के बाद साधु-संतों के महाराष्ट� कूच की चेतावनी दे दी है। यह अवश्य है कि हर बार माॅब-लिंचिंग को लेकर दुनिया भर में शोर मचा देने वाले उन पत्रकारों, लेखकों, राजनेताओं और फिल्मकारों की इस घटना पर चुप्पी आश्चर्यजनक रही। इस तरह की चुप्पी सोशल मीडिया पर छाए उन आरोपों की पुष्टि करती है कि ऐसे बुद्धिजीवियों का स्वयं का नजरिया पक्षपातपूर्ण रहता है। विपक्ष प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर उद्धव ठाकरे सरकार पर सवाल उठा रहा है। यह बात और है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में 110 लोगों को गिरफ्तार कर और दो पुलिसकर्मियों को निलंबित करते हुए जांच का ऐलान कर दिया।

हालांकि, पुलिस पर आरोप है कि उसने जो तत्परता आरोपियों की गिरफ्तारी में दिखाई, वैसी यदि तीनों को बचाने में दिखाई होती तो यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना टाली जा सकती थी। वन विभाग के गश्त कर रहे दो अधिकारी इन तीनों को भीड़ से बचाकर अपने दफ्तर ले आए थे। जाहिर है कि इसकी इत्तला भी पुलिस को जरूर दी गई होगी। तो फिर पुलिस बिना तैयारी वहां क्यों गई? घटना के जो विडियो भी बता रहे हैं कि किस प्रकार कानून के रखवाले भीड़़ के आगे बेबस नजर आ रहे थे। बच्चा चोर गिरोह से जुड़े होने के शक में माॅब-लिंचिंग के मामले पहले भी हुए हैं। इस प्रकरण में भी क्षेत्र के आदिवासी, बच्चा चोर गिरोह के होने की अफवाह से डरे हुए थे। लेकिन लाॅकडाउन के दौरान इतनी भड़ का सड़क पर आना भी सवाल खड़े करता है। भीड़ खुद कानून का काम करने लगे, इसे किसी भी सूरत में इजाजत नहीं होनी चाहिए बड़ी चिंता ऐसे मामलों को साम्प्रदायिक रंग देने की है, जो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान में भी दिखती है। दरअसल, सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने अफवाहों को तेजी से फैलाने का काम किया है। ऐसे माहौल में जब समूचा देश कोरोना संक्रमण के खतरे से एकजुट होकर मुकाबला करता दिख रहा है, आपसी विद्वेष न पनपे इसका भी ध्यान रखना होगा। उकसाने वाले संदेशों का आदान-प्रदान सामाजिक समरसता को भंग करने वाला हो सकता है।

   80 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, महाराष्ट्र में पालघर के गडचिंचले गांव में मांब लिंचिंग की घटना दो तरह के उन्मादी वायरस के रूप में उभर कर सामने आई है। पहला भीड़ का उन्माद जिसकी करतूत से यह शर्मनाक घटना हुई और दूसरा सोशल मीडिया के जरिए फैलाए जाने वाला वह उन्मादी वायरस, जिससे इस प्रकरण को सियासी व मजहबी रंग देने की कोशिशें भी होती दिख रही हैं। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से जो // बयान दिया गया है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है कि अखिल भारतीय अखाड़ा // परिषद तक ने लाॅकडाउन खुलने के बाद साधु-संतों के महाराष्ट्र कूच की चेतावनी दे दी है। यह अवश्य है कि हर बार माॅब-लिंचिंग को लेकर दुनिया भर में शोर मचा देने वाले उन पत्रकारों, लेखकों, राजनेताओं और फिल्मकारों की इस घटना पर चुप्पी आश्चर्यजनक रही। इस तरह की चुप्पी सोशल मीडिया पर छाए उन आरोपों की पुष्टि करती है कि ऐसे बुद्धिजीवियों का स्वयं का नजरिया पक्षपातपूर्ण रहता है। विपक्ष // प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर उद्धव ठाकरे सरकार पर सवाल उठा रहा है। यह बात और है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में 110 लोगों को गिरफ्तार कर और दो पुलिसकर्मियों को निलंबित करते हुए जांच का ऐलान कर दिया।
हालांकि, पुलिस पर आरोप है कि उसने जो तत्परता आरोपियों की गिरफ्तारी में दिखाई, वैसी यदि तीनों को बचाने में दिखाई होती तो यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना टाली जा सकती // थी। वन विभाग के गश्त कर रहे दो अधिकारी इन तीनों को भीड़ से बचाकर अपने दफ्तर ले आए थे। जाहिर है कि इसकी इत्तला भी पुलिस को जरूर दी गई होगी। तो फिर पुलिस बिना तैयारी वहां क्यों गई? घटना के जो विडियो भी बता रहे हैं कि किस प्रकार कानून के रखवाले भीड़़ के आगे बेबस नजर आ रहे थे। बच्चा चोर गिरोह से जुड़े होने के शक // में माॅब-लिंचिंग के मामले पहले भी हुए हैं। इस प्रकरण में भी क्षेत्र के आदिवासी, बच्चा चोर गिरोह के होने की अफवाह से डरे हुए थे। लेकिन लाॅकडाउन के दौरान इतनी भड़ का सड़क पर आना भी सवाल खड़े करता है। भीड़ खुद कानून का काम करने लगे, इसे किसी भी सूरत में इजाजत नहीं होनी चाहिए बड़ी चिंता ऐसे मामलों को साम्प्रदायिक रंग देने की है, जो मुख्यमंत्री उद्धव // ठाकरे के बयान में भी दिखती है। दरअसल, सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने अफवाहों को तेजी से फैलाने का काम किया है। ऐसे माहौल में जब समूचा देश कोरोना संक्रमण के खतरे से एकजुट होकर मुकाबला करता दिख रहा है, आपसी विद्वेष न पनपे इसका भी ध्यान रखना होगा। उकसाने वाले संदेशों का आदान-प्रदान सामाजिक समरसता को भंग करने वाला हो सकता है।




   90 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, महाराष्ट्र में पालघर के गडचिंचले गांव में मांब लिंचिंग की घटना दो तरह के उन्मादी वायरस के रूप में उभर कर सामने आई है। पहला भीड़ का उन्माद जिसकी करतूत से यह शर्मनाक घटना हुई और दूसरा सोशल मीडिया के जरिए फैलाए जाने वाला वह उन्मादी वायरस, जिससे इस प्रकरण को सियासी व मजहबी रंग देने की कोशिशें भी होती दिख रही हैं। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से जो बयान दिया गया है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की // पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तक ने लाॅकडाउन खुलने के बाद साधु-संतों के महाराष्ट्र कूच की चेतावनी दे दी है। यह अवश्य है कि हर बार माॅब-लिंचिंग को लेकर दुनिया भर में शोर मचा देने वाले उन पत्रकारों, लेखकों, राजनेताओं और फिल्मकारों की इस // घटना पर चुप्पी आश्चर्यजनक रही। इस तरह की चुप्पी सोशल मीडिया पर छाए उन आरोपों की पुष्टि करती है कि ऐसे बुद्धिजीवियों का स्वयं का नजरिया पक्षपातपूर्ण रहता है। विपक्ष प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर उद्धव ठाकरे सरकार पर सवाल उठा रहा है। यह बात और है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में 110 लोगों को गिरफ्तार कर और दो पुलिसकर्मियों को निलंबित करते हुए जांच का ऐलान कर दिया।
हालांकि, पुलिस पर आरोप है कि उसने जो तत्परता आरोपियों की गिरफ्तारी में दिखाई, वैसी यदि तीनों को बचाने // में दिखाई होती तो यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना टाली जा सकती थी। वन विभाग के गश्त कर रहे दो अधिकारी इन तीनों को भीड़ से बचाकर अपने दफ्तर ले आए थे। जाहिर है कि इसकी इत्तला भी पुलिस को जरूर दी गई होगी। तो फिर पुलिस बिना तैयारी वहां क्यों गई? घटना के जो विडियो भी बता रहे हैं कि किस प्रकार कानून के रखवाले भीड़़ के आगे बेबस नजर आ रहे थे। बच्चा चोर गिरोह से जुड़े होने के शक में माॅब-लिंचिंग के मामले पहले भी हुए हैं। इस प्रकरण // में भी क्षेत्र के आदिवासी, बच्चा चोर गिरोह के होने की अफवाह से डरे हुए थे। लेकिन लाॅकडाउन के दौरान इतनी भड़ का सड़क पर आना भी सवाल खड़े करता है। भीड़ खुद कानून का काम करने लगे, इसे किसी भी सूरत में इजाजत नहीं होनी चाहिए बड़ी चिंता ऐसे मामलों को साम्प्रदायिक रंग देने की है, जो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान में भी दिखती है। दरअसल, सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने अफवाहों को तेजी से फैलाने का काम किया है। ऐसे माहौल में जब समूचा देश कोरोना संक्रमण // के खतरे से एकजुट होकर मुकाबला करता दिख रहा है, आपसी विद्वेष न पनपे इसका भी ध्यान रखना होगा। उकसाने वाले संदेशों का आदान-प्रदान सामाजिक समरसता को भंग करने वाला हो सकता है।


   100 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, महाराष्ट्र में पालघर के गडचिंचले गांव में मांब लिंचिंग की घटना दो तरह के उन्मादी वायरस के रूप में उभर कर सामने आई है। पहला भीड़ का उन्माद जिसकी करतूत से यह शर्मनाक घटना हुई और दूसरा सोशल मीडिया के जरिए फैलाए जाने वाला वह उन्मादी वायरस, जिससे इस प्रकरण को सियासी व मजहबी रंग देने की कोशिशें भी होती दिख रही हैं। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से जो बयान दिया गया है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी // घमासान इस कदर उठा है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तक ने लाॅकडाउन खुलने के बाद साधु-संतों के महाराष्ट्र कूच की चेतावनी दे दी है। यह अवश्य है कि हर बार माॅब-लिंचिंग को लेकर दुनिया भर में शोर मचा देने वाले उन पत्रकारों, लेखकों, राजनेताओं और फिल्मकारों की इस घटना पर चुप्पी आश्चर्यजनक रही। इस तरह की चुप्पी सोशल मीडिया पर छाए उन आरोपों की पुष्टि करती है कि // ऐसे बुद्धिजीवियों का स्वयं का नजरिया पक्षपातपूर्ण रहता है। विपक्ष प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर उद्धव ठाकरे सरकार पर सवाल उठा रहा है। यह बात और है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में 110 लोगों को गिरफ्तार कर और दो पुलिसकर्मियों को निलंबित करते हुए जांच का ऐलान कर दिया।
हालांकि, पुलिस पर आरोप है कि उसने जो तत्परता आरोपियों की गिरफ्तारी में दिखाई, वैसी यदि तीनों को बचाने में दिखाई होती तो यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना टाली जा सकती थी। वन विभाग के गश्त कर रहे दो अधिकारी इन तीनों को भीड़ से बचाकर अपने दफ्तर ले आए थे। // जाहिर है कि इसकी इत्तला भी पुलिस को जरूर दी गई होगी। तो फिर पुलिस बिना तैयारी वहां क्यों गई? घटना के जो विडियो भी बता रहे हैं कि किस प्रकार कानून के रखवाले भीड़़ के आगे बेबस नजर आ रहे थे। बच्चा चोर गिरोह से जुड़े होने के शक में माॅब-लिंचिंग के मामले पहले भी हुए हैं। इस प्रकरण में भी क्षेत्र के आदिवासी, बच्चा चोर गिरोह के होने की अफवाह से डरे हुए थे। लेकिन लाॅकडाउन के दौरान इतनी भड़ का सड़क पर आना भी सवाल खड़े करता है। भीड़ खुद कानून का काम करने लगे, इसे किसी // भी सूरत में इजाजत नहीं होनी चाहिए बड़ी चिंता ऐसे मामलों को साम्प्रदायिक रंग देने की है, जो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान में भी दिखती है। दरअसल, सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने अफवाहों को तेजी से फैलाने का काम किया है। ऐसे माहौल में जब समूचा देश कोरोना संक्रमण के खतरे से एकजुट होकर मुकाबला करता दिख रहा है, आपसी विद्वेष न पनपे इसका भी ध्यान रखना होगा। उकसाने वाले संदेशों का आदान-प्रदान सामाजिक समरसता को भंग करने वाला हो सकता है।


   120 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, महाराष्ट्र में पालघर के गडचिंचले गांव में मांब लिंचिंग की घटना दो तरह के उन्मादी वायरस के रूप में उभर कर सामने आई है। पहला भीड़ का उन्माद जिसकी करतूत से यह शर्मनाक घटना हुई और दूसरा सोशल मीडिया के जरिए फैलाए जाने वाला वह उन्मादी वायरस, जिससे इस प्रकरण को सियासी व मजहबी रंग देने की कोशिशें भी होती दिख रही हैं। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से जो बयान दिया गया है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है उसके अनुसार भीड़ ने बच्चा चोर गिरोह होने के शक में दो साधुओं समेत तीनों // की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस प्रकरण को लेकर सियासी घमासान इस कदर उठा है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तक ने लाॅकडाउन खुलने के बाद साधु-संतों के महाराष्ट्र कूच की चेतावनी दे दी है। यह अवश्य है कि हर बार माॅब-लिंचिंग को लेकर दुनिया भर में शोर मचा देने वाले उन पत्रकारों, लेखकों, राजनेताओं और फिल्मकारों की इस घटना पर चुप्पी आश्चर्यजनक रही। इस तरह की चुप्पी सोशल मीडिया पर छाए उन आरोपों की पुष्टि करती है कि ऐसे बुद्धिजीवियों का स्वयं का नजरिया पक्षपातपूर्ण रहता है। विपक्ष प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर उद्धव ठाकरे सरकार पर सवाल उठा रहा है। यह बात और है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में 110 लोगों को गिरफ्तार कर और // दो पुलिसकर्मियों को निलंबित करते हुए जांच का ऐलान कर दिया।
हालांकि, पुलिस पर आरोप है कि उसने जो तत्परता आरोपियों की गिरफ्तारी में दिखाई, वैसी यदि तीनों को बचाने में दिखाई होती तो यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना टाली जा सकती थी। वन विभाग के गश्त कर रहे दो अधिकारी इन तीनों को भीड़ से बचाकर अपने दफ्तर ले आए थे। जाहिर है कि इसकी इत्तला भी पुलिस को जरूर दी गई होगी। तो फिर पुलिस बिना तैयारी वहां क्यों गई? घटना के जो विडियो भी बता रहे हैं कि किस प्रकार कानून के रखवाले भीड़़ के आगे बेबस नजर आ रहे थे। बच्चा चोर गिरोह से जुड़े होने के शक में माॅब-लिंचिंग के मामले पहले भी हुए हैं। इस प्रकरण // में भी क्षेत्र के आदिवासी, बच्चा चोर गिरोह के होने की अफवाह से डरे हुए थे। लेकिन लाॅकडाउन के दौरान इतनी भड़ का सड़क पर आना भी सवाल खड़े करता है। भीड़ खुद कानून का काम करने लगे, इसे किसी भी सूरत में इजाजत नहीं होनी चाहिए बड़ी चिंता ऐसे मामलों को साम्प्रदायिक रंग देने की है, जो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान में भी दिखती है। दरअसल, सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने अफवाहों को तेजी से फैलाने का काम किया है। ऐसे माहौल में जब समूचा देश कोरोना संक्रमण के खतरे से एकजुट होकर मुकाबला करता दिख रहा है, आपसी विद्वेष न पनपे इसका भी ध्यान रखना होगा। उकसाने वाले संदेशों का आदान-प्रदान सामाजिक समरसता को भंग करने वाला हो सकता है। //

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