Hindi News Paper Dictation #15 [ विद्यार्थियों की चिंता ] | ( 80 WPM)

Hindi News Paper Dictation #15 [ विद्यार्थियों की चिंता ] 




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 [ --   विद्यार्थियों की चिंता  -- ]


   70 शब्द प्रतिमिनट

  कोरोना दुनिया को तोड़ रहा है। चीन और अमरीका जैसे महाबली उसके आगे समर्पण कर चुके। उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। उल्टे उसने वहां हजारों निर्दोषों की जान ले ली। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों या विश्व भर में मासूम बच्चों और दिन भर मेहनत-मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरने वाले मजदूरों की तो बिसात ही क्या है? सब कोरोना के वायरस से तन मन और // धन से लड़ रहे हैं। जो पाॅजिटिव आते हैं वे ठीक होकर जीत का जश्न मनाते हैं और रोज कमा कर, रोज खाने वाले उस दिन अपने परिवार का पेट भरने के बाद खुशियां मनाते हैं। लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत में, कमोबेश केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इस दिशा में खूब मदद की है। देश के किसानों द्वारा उपजाए खाद्यान्नों से भरे गोदाम इस दिशा में सरकारों // की बहुत सहायता कर रहे हैं। लाॅकडाउन बहुत कम समय के नोटिस पर लागू हुआ। जो जहां था वहीं अटका रह गया। ऐसे में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की अपने-अपने प्रदेशों के प्रवासी मजदूरों और अन्य राज्यों में गए छात्रों की घर वापसी की चिंता स्वाभाविक ही है। देश के अन्य राज्यों से भी छात्र-मजदूर देश के अन्य हिस्सों में जाते हैं लेकिन उनकी संख्या नगण्य है। // राजस्थान से निकले ज्यादातर लोग धंधे में और यूपी-बिहार के मेहनत वाले कामों में देश के अधिकांश राज्यों में मिल जाएंगे।

राजस्थान के कोटा शहर की पहचान पिछले दो दशकों में कोचिंग इंडस्ट्री के रूप में, देश भर में हुई है। छोटे-बड़े 30-40 संस्थानों में देश भर के करीब दो लाख छात्र हर साल यहां मेडिकल-इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अपने आप को तैयार करते हैं। इस इंडस्ट्री की // वजह से कोटा को नया जीवन मिल गया अन्यथा जेके सहित अन्य अनेक उद्योगों के बंद होने से सालों पहले यहां भुखमरी के हालात बन गए थे। चूंकि ये सारे बच्चे कम उम्र के होते हैं, इसलिए जैसे ही अचानक लाॅकडाउन लागू हुआ ये मासूम सबसे ज्यादा परेशान हुए। राजस्थान सरकार द्वारा उनके लिए सारे बंदोबस्त किए जाने के बावजूद बच्चों की रट अपने घर जाने की रही। राजस्थान के // मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रयासों से कुछ राज्य अपने बच्चों को ले गए लेकिन बिहार जैसे राज्य अभी भी नहीं ले जाने पर अड़े हैं। जब छात्रों की घर वापसी शुरू हुई तो मजदूरों में भी मांग उठाना स्वाभाविक था। आखिर कोई आदमी कब तक अकेला या परिवार सहित बिना रोजगार घर से दर दूर बैठा रहे। जैसी भी रूखी-सूखी मिले, अपने घर पर खाने // की ललक कोई बेजा नहीं है। ऐसे में जबकि अभी यह पक्का नहीं है कि 3 मई को लाॅकडाउन खुल ही जाएगा तब केंद्र और राज्यों की सरकारों को, अपने-अपने यहां अटके अन्य राज्यों के बच्चों और मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिए। मारवाड़ी तो हर राज्य में हैं। इस मौके पर उनमें से भी बहुत से घर लौटना चाहते हैं तो उनके लिए भी इंतजामात होने चाहिए।//

   80 शब्द प्रतिमिनट

कोरोना दुनिया को तोड़ रहा है। चीन और अमरीका जैसे महाबली उसके आगे समर्पण कर चुके। उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। उल्टे उसने वहां हजारों निर्दोषों की जान ले ली। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों या विश्व भर में मासूम बच्चों और दिन भर मेहनत-मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरने वाले मजदूरों की तो बिसात ही क्या है? सब कोरोना के वायरस से तन मन और धन से लड़ रहे हैं। जो पाॅजिटिव आते हैं वे // ठीक होकर जीत का जश्न मनाते हैं और रोज कमा कर, रोज खाने वाले उस दिन अपने परिवार का पेट भरने के बाद खुशियां मनाते हैं। लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत में, कमोबेश केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इस दिशा में खूब मदद की है। देश के किसानों द्वारा उपजाए खाद्यान्नों से भरे गोदाम इस दिशा में सरकारों की बहुत सहायता कर रहे हैं। लाॅकडाउन बहुत कम समय के नोटिस पर लागू हुआ। जो जहां था वहीं अटका // रह गया। ऐसे में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की अपने-अपने प्रदेशों के प्रवासी मजदूरों और अन्य राज्यों में गए छात्रों की घर वापसी की चिंता स्वाभाविक ही है। देश के अन्य राज्यों से भी छात्र-मजदूर देश के अन्य हिस्सों में जाते हैं लेकिन उनकी संख्या नगण्य है। राजस्थान से निकले ज्यादातर लोग धंधे में और यूपी-बिहार के मेहनत वाले कामों में देश के अधिकांश राज्यों में मिल जाएंगे।

राजस्थान के कोटा शहर की पहचान पिछले दो दशकों // में कोचिंग इंडस्ट्री के रूप में, देश भर में हुई है। छोटे-बड़े 30-40 संस्थानों में देश भर के करीब दो लाख छात्र हर साल यहां मेडिकल-इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अपने आप को तैयार करते हैं। इस इंडस्ट्री की वजह से कोटा को नया जीवन मिल गया अन्यथा जेके सहित अन्य अनेक उद्योगों के बंद होने से सालों पहलेयहां भुखमरी के हालात बन गए थे। चूंकि ये सारे बच्चे कम उम्र के होते हैं, इसलिए जैसे ही अचानक लाॅकडाउन // लागू हुआ ये मासूम सबसे ज्यादा परेशान हुए। राजस्थान सरकार द्वारा उनके लिए सारे बंदोबस्त किए जाने के बावजूद बच्चों की रट अपने घर जाने की रही। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रयासों से कुछ राज्य अपने बच्चों को ले गए लेकिन बिहार जैसे राज्य अभी भी नहीं ले जाने पर अड़े हैं। जब छात्रों की घर वापसी शुरू हुई तो मजदूरों में भी मांग उठाना स्वाभाविक था। आखिर कोई आदमी कब तक अकेला // या परिवार सहित बिना रोजगार घर से दर दूर बैठा रहे। जैसी भी रूखी-सूखी मिले, अपने घर पर खाने की ललक कोई बेजा नहीं है। ऐसे में जबकि अभी यह पक्का नहीं है कि 3 मई को लाॅकडाउन खुल ही जाएगा तब केंद्र और राज्यों की सरकारों को, अपने-अपने यहां अटके अन्य राज्यों के बच्चों और मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिए। मारवाड़ी तो हर राज्य में हैं। इस मौके पर उनमें से भी बहुत // से घर लौटना चाहते हैं तो उनके लिए भी इंतजामात होने चाहिए।




   90 शब्द प्रतिमिनट

कोरोना दुनिया को तोड़ रहा है। चीन और अमरीका जैसे महाबली उसके आगे समर्पण कर चुके। उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। उल्टे उसने वहां हजारों निर्दोषों की जान ले ली। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों या विश्व भर में मासूम बच्चों और दिन भर मेहनत-मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरने वाले मजदूरों की तो बिसात ही क्या है? सब कोरोना के वायरस से तन मन और धन से लड़ रहे हैं। जो पाॅजिटिव आते हैं वे ठीक होकर जीत का जश्न मनाते हैं और रोज कमा // कर, रोज खाने वाले उस दिन अपने परिवार का पेट भरने के बाद खुशियां मनाते हैं। लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत में, कमोबेश केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इस दिशा में खूब मदद की है। देश के किसानों द्वारा उपजाए खाद्यान्नों से भरे गोदाम इस दिशा में सरकारों की बहुत सहायता कर रहे हैं। लाॅकडाउन बहुत कम समय के नोटिस पर लागू हुआ। जो जहां था वहीं अटका रह गया। ऐसे में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की अपने-अपने प्रदेशों के प्रवासी मजदूरों और अन्य राज्यों // में गए छात्रों की घर वापसी की चिंता स्वाभाविक ही है। देश के अन्य राज्यों से भी छात्र-मजदूर देश के अन्य हिस्सों में जाते हैं लेकिन उनकी संख्या नगण्य है। राजस्थान से निकले ज्यादातर लोग धंधे में और यूपी-बिहार के मेहनत वाले कामों में देश के अधिकांश राज्यों में मिल जाएंगे।

राजस्थान के कोटा शहर की पहचान पिछले दो दशकों में कोचिंग इंडस्ट्री के रूप में, देश भर में हुई है। छोटे-बड़े 30-40 संस्थानों में देश भर के करीब दो लाख छात्र हर साल यहां मेडिकल-इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षाओं के // लिए अपने आप को तैयार करते हैं। इस इंडस्ट्री की वजह से कोटा को नया जीवन मिल गया अन्यथा जेके सहित अन्य अनेक उद्योगों के बंद होने से सालों पहले यहां भुखमरी के हालात बन गए थे। चूंकि ये सारे बच्चे कम उम्र के होते हैं, इसलिए जैसे ही अचानक लाॅकडाउन लागू हुआ ये मासूम सबसे ज्यादा परेशान हुए। राजस्थान सरकार द्वारा उनके लिए सारे बंदोबस्त किए जाने के बावजूद बच्चों की रट अपने घर जाने की रही। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रयासों // से कुछ राज्य अपने बच्चों को ले गए लेकिन बिहार जैसे राज्य अभी भी नहीं ले जाने पर अड़े हैं। जब छात्रों की घर वापसी शुरू हुई तो मजदूरों में भी मांग उठाना स्वाभाविक था। आखिर कोई आदमी कब तक अकेला या परिवार सहित बिना रोजगार घर से दर दूर बैठा रहे। जैसी भी रूखी-सूखी मिले, अपने घर पर खाने की ललक कोई बेजा नहीं है। ऐसे में जबकि अभी यह पक्का नहीं है कि 3 मई को लाॅकडाउन खुल ही जाएगा तब केंद्र और राज्यों की सरकारों को, अपने-अपने // यहां अटके अन्य राज्यों के बच्चों और मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिए। मारवाड़ी तो हर राज्य में हैं। इस मौके पर उनमें से भी बहुत से घर लौटना चाहते हैं तो उनके लिए भी इंतजामात होने चाहिए।

   100 शब्द प्रतिमिनट

कोरोना दुनिया को तोड़ रहा है। चीन और अमरीका जैसे महाबली उसके आगे समर्पण कर चुके। उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। उल्टे उसने वहां हजारों निर्दोषों की जान ले ली। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों या विश्व भर में मासूम बच्चों और दिन भर मेहनत-मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरने वाले मजदूरों की तो बिसात ही क्या है? सब कोरोना के वायरस से तन मन और धन से लड़ रहे हैं। जो पाॅजिटिव आते हैं वे ठीक होकर जीत का जश्न मनाते हैं और रोज कमा कर, रोज खाने वाले उस दिन अपने परिवार का पेट // भरने के बाद खुशियां मनाते हैं। लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत में, कमोबेश केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इस दिशा में खूब मदद की है। देश के किसानों द्वारा उपजाए खाद्यान्नों से भरे गोदाम इस दिशा में सरकारों की बहुत सहायता कर रहे हैं। लाॅकडाउन बहुत कम समय के नोटिस पर लागू हुआ। जो जहां था वहीं अटका रह गया। ऐसे में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की अपने-अपने प्रदेशों के प्रवासी मजदूरों और अन्य राज्यों में गए छात्रों की घर वापसी की चिंता स्वाभाविक ही है। देश के अन्य राज्यों से भी छात्र-मजदूर देश के // अन्य हिस्सों में जाते हैं लेकिन उनकी संख्या नगण्य है। राजस्थान से निकले ज्यादातर लोग धंधे में और यूपी-बिहार के मेहनत वाले कामों में देश के अधिकांश राज्यों में मिल जाएंगे।

राजस्थान के कोटा शहर की पहचान पिछले दो दशकों में कोचिंग इंडस्ट्री के रूप में, देश भर में हुई है। छोटे-बड़े 30-40 संस्थानों में देश भर के करीब दो लाख छात्र हर साल यहां मेडिकल-इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अपने आप को तैयार करते हैं। इस इंडस्ट्री की वजह से कोटा को नया जीवन मिल गया अन्यथा जेके सहित अन्य अनेक उद्योगों के बंद होने से सालों पहले // यहां भुखमरी के हालात बन गए थे। चूंकि ये सारे बच्चे कम उम्र के होते हैं, इसलिए जैसे ही अचानक लाॅकडाउन लागू हुआ ये मासूम सबसे ज्यादा परेशान हुए। राजस्थान सरकार द्वारा उनके लिए सारे बंदोबस्त किए जाने के बावजूद बच्चों की रट अपने घर जाने की रही। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रयासों से कुछ राज्य अपने बच्चों को ले गए लेकिन बिहार जैसे राज्य अभी भी नहीं ले जाने पर अड़े हैं। जब छात्रों की घर वापसी शुरू हुई तो मजदूरों में भी मांग उठाना स्वाभाविक था। आखिर कोई आदमी कब तक // अकेला या परिवार सहित बिना रोजगार घर से दर दूर बैठा रहे। जैसी भी रूखी-सूखी मिले, अपने घर पर खाने की ललक कोई बेजा नहीं है। ऐसे में जबकि अभी यह पक्का नहीं है कि 3 मई को लाॅकडाउन खुल ही जाएगा तब केंद्र और राज्यों की सरकारों को, अपने-अपने यहां अटके अन्य राज्यों के बच्चों और मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिए। मारवाड़ी तो हर राज्य में हैं। इस मौके पर उनमें से भी बहुत से घर लौटना चाहते हैं तो उनके लिए भी इंतजामात होने चाहिए। //


   120 शब्द प्रतिमिनट

कोरोना दुनिया को तोड़ रहा है। चीन और अमरीका जैसे महाबली उसके आगे समर्पण कर चुके। उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। उल्टे उसने वहां हजारों निर्दोषों की जान ले ली। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों या विश्व भर में मासूम बच्चों और दिन भर मेहनत-मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरने वाले मजदूरों की तो बिसात ही क्या है? सब कोरोना के वायरस से तन मन और धन से लड़ रहे हैं। जो पाॅजिटिव आते हैं वे ठीक होकर जीत का जश्न मनाते हैं और रोज कमा कर, रोज खाने वाले उस दिन अपने परिवार का पेट भरने के बाद खुशियां मनाते हैं। लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत में, कमोबेश केंद्र और राज्यों की सरकारों ने // इस दिशा में खूब मदद की है। देश के किसानों द्वारा उपजाए खाद्यान्नों से भरे गोदाम इस दिशा में सरकारों की बहुत सहायता कर रहे हैं। लाॅकडाउन बहुत कम समय के नोटिस पर लागू हुआ। जो जहां था वहीं अटका रह गया। ऐसे में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की अपने-अपने प्रदेशों के प्रवासी मजदूरों और अन्य राज्यों में गए छात्रों की घर वापसी की चिंता स्वाभाविक ही है। देश के अन्य राज्यों से भी छात्र-मजदूर देश के अन्य हिस्सों में जाते हैं लेकिन उनकी संख्या नगण्य है। राजस्थान से निकले ज्यादातर लोग धंधे में और यूपी-बिहार के मेहनत वाले कामों में देश के अधिकांश राज्यों में मिल जाएंगे।

राजस्थान के कोटा शहर की पहचान पिछले दो दशकों // में कोचिंग इंडस्ट्री के रूप में, देश भर में हुई है। छोटे-बड़े 30-40 संस्थानों में देश भर के करीब दो लाख छात्र हर साल यहां मेडिकल-इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अपने आप को तैयार करते हैं। इस इंडस्ट्री की वजह से कोटा को नया जीवन मिल गया अन्यथा जेके सहित अन्य अनेक उद्योगों के बंद होने से सालों पहले यहां भुखमरी के हालात बन गए थे। चूंकि ये सारे बच्चे कम उम्र के होते हैं, इसलिए जैसे ही अचानक लाॅकडाउन लागू हुआ ये मासूम सबसे ज्यादा परेशान हुए। राजस्थान सरकार द्वारा उनके लिए सारे बंदोबस्त किए जाने के बावजूद बच्चों की रट अपने घर जाने की रही। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रयासों // से कुछ राज्य अपने बच्चों को ले गए लेकिन बिहार जैसे राज्य अभी भी नहीं ले जाने पर अड़े हैं। जब छात्रों की घर वापसी शुरू हुई तो मजदूरों में भी मांग उठाना स्वाभाविक था। आखिर कोई आदमी कब तक अकेला या परिवार सहित बिना रोजगार घर से दर दूर बैठा रहे। जैसी भी रूखी-सूखी मिले, अपने घर पर खाने की ललक कोई बेजा नहीं है। ऐसे में जबकि अभी यह पक्का नहीं है कि 3 मई को लाॅकडाउन खुल ही जाएगा तब केंद्र और राज्यों की सरकारों को, अपने-अपने यहां अटके अन्य राज्यों के बच्चों और मजदूरों को उनके // घर तक पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिए। मारवाड़ी तो हर राज्य में हैं। इस मौके पर उनमें से भी बहुत से घर लौटना चाहते हैं तो उनके लिए भी इंतजामात होने चाहिए।




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From - RAJAT SONI



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