HINDI STENO DICTATION #03 [ SSC CRPF RMSSB DSSB HIGHCOURT ]
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प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार // पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही कनहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार // किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं // कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिंगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का // आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है।
प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक // जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति // भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही कनहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी // के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को // होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है। //
प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल // का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही नहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी // और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, // भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से // प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है।
प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप // में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही नहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का // रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को // होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है।
प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति // भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही कनहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, // भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है। //
[ -- All Steno Exam Important DIC. #03 -- ]
70 शब्द प्रतिमिनट
प्रजातंत्र में शासन का संचालन प्रजा करती है, प्रजा का शासन में अधिक हाथ हो, यही प्रजातंत्र की सफलता की सर्वश्रेष्ठता की कसौटी है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए जनता की भावनाओं को जनता एवं जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी आवश्यक है। समाचार-पत्र आधुनिक युग में मुक्त होकर कार्य करें तो प्रजा का सुख बढ़ जाएगा। यदि प्रेस राज्य के अंकुश में रहता है तो प्रजा की इच्छा // की अभिव्यक्ति करना एक अपराध बन जाता है और इस स्थिति में प्रेस की लोकप्रियता घट जाती है, प्रेस की दबी आवाज सरकार के पतन का कारण है, प्रजातंत्र की सफलता के लिए समाचार-पत्रों को पूर्ण स्वतंत्र होना चाहिए। प्रेस के महत्व को सभी जानते हैं इसके महत्व पर ध्यान न देना अत्यधिक बड़ी भूल है। राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को देश, विदेशी की बात का ज्ञान समाचार-पत्रों के द्वारा // ही होता है।प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार // पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही कनहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार // किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं // कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिंगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का // आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है।
80 शब्द प्रतिमिनट
प्रजातंत्र में शासन का संचालन प्रजा करती है, प्रजा का शासन में अधिक हाथ हो, यही प्रजातंत्र की सफलता की सर्वश्रेष्ठता की कसौटी है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए जनता की भावनाओं को जनता एवं जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी आवश्यक है। समाचार-पत्र आधुनिक युग में मुक्त होकर कार्य करें तो प्रजा का सुख बढ़ जाएगा। यदि प्रेस राज्य के अंकुश में रहता है तो प्रजा की इच्छा की अभिव्यक्ति करना एक अपराध बन जाता है और इस // स्थिति में प्रेस की लोकप्रियता घट जाती है, प्रेस की दबी आवाज सरकार के पतन का कारण है, प्रजातंत्र की सफलता के लिए समाचार-पत्रों को पूर्ण स्वतंत्र होना चाहिए। प्रेस के महत्व को सभी जानते हैं इसके महत्व पर ध्यान न देना अत्यधिक बड़ी भूल है। राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को देश, विदेशी की बात का ज्ञान समाचार-पत्रों के द्वारा ही होता है।प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक // जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति // भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही कनहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी // के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को // होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है। //
90 शब्द प्रतिमिनट
प्रजातंत्र में शासन का संचालन प्रजा करती है, प्रजा का शासन में अधिक हाथ हो, यही प्रजातंत्र की सफलता की सर्वश्रेष्ठता की कसौटी है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए जनता की भावनाओं को जनता एवं जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी आवश्यक है। समाचार-पत्र आधुनिक युग में मुक्त होकर कार्य करें तो प्रजा का सुख बढ़ जाएगा। यदि प्रेस राज्य के अंकुश में रहता है तो प्रजा की इच्छा की अभिव्यक्ति करना एक अपराध बन जाता है और इस स्थिति में प्रेस की लोकप्रियता घट जाती है, प्रेस की // दबी आवाज सरकार के पतन का कारण है, प्रजातंत्र की सफलता के लिए समाचार-पत्रों को पूर्ण स्वतंत्र होना चाहिए। प्रेस के महत्व को सभी जानते हैं इसके महत्व पर ध्यान न देना अत्यधिक बड़ी भूल है। राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को देश, विदेशी की बात का ज्ञान समाचार-पत्रों के द्वारा ही होता है।प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल // का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही नहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी // और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, // भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से // प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है।
100 शब्द प्रतिमिनट
प्रजातंत्र में शासन का संचालन प्रजा करती है, प्रजा का शासन में अधिक हाथ हो, यही प्रजातंत्र की सफलता की सर्वश्रेष्ठता की कसौटी है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए जनता की भावनाओं को जनता एवं जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी आवश्यक है। समाचार-पत्र आधुनिक युग में मुक्त होकर कार्य करें तो प्रजा का सुख बढ़ जाएगा। यदि प्रेस राज्य के अंकुश में रहता है तो प्रजा की इच्छा की अभिव्यक्ति करना एक अपराध बन जाता है और इस स्थिति में प्रेस की लोकप्रियता घट जाती है, प्रेस की दबी आवाज सरकार के पतन का कारण है, प्रजातंत्र की // सफलता के लिए समाचार-पत्रों को पूर्ण स्वतंत्र होना चाहिए। प्रेस के महत्व को सभी जानते हैं इसके महत्व पर ध्यान न देना अत्यधिक बड़ी भूल है। राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को देश, विदेशी की बात का ज्ञान समाचार-पत्रों के द्वारा ही होता है।प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप // में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही नहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का // रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को // होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है।
120 शब्द प्रतिमिनट
प्रजातंत्र में शासन का संचालन प्रजा करती है, प्रजा का शासन में अधिक हाथ हो, यही प्रजातंत्र की सफलता की सर्वश्रेष्ठता की कसौटी है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए जनता की भावनाओं को जनता एवं जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी आवश्यक है। समाचार-पत्र आधुनिक युग में मुक्त होकर कार्य करें तो प्रजा का सुख बढ़ जाएगा। यदि प्रेस राज्य के अंकुश में रहता है तो प्रजा की इच्छा की अभिव्यक्ति करना एक अपराध बन जाता है और इस स्थिति में प्रेस की लोकप्रियता घट जाती है, प्रेस की दबी आवाज सरकार के पतन का कारण है, प्रजातंत्र की सफलता के लिए समाचार-पत्रों को पूर्ण स्वतंत्र होना चाहिए। प्रेस के महत्व को सभी जानते हैं इसके महत्व पर ध्यान // न देना अत्यधिक बड़ी भूल है। राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को देश, विदेशी की बात का ज्ञान समाचार-पत्रों के द्वारा ही होता है।प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा रोगदान रहता है। लोकतंत्र की प्रणाली महत्वपूर्ण होते हुए भी अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, धार्मिक स्थिति तथा जातीय एकता पर आधारित नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुर्जा भी शिथिल पड़ गया तो संपूर्ण लोकतंत्र की मशीने संचालित होने से रूक जाएंगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता रहता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार-पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस कर पाने में सफल हुआ है। जन आन्दोलन की अभिव्यक्ति // भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ है। यही कनहीं युग के कवि, दार्शिनिक, संत एवं विचारकों के लेखों ने समाचार-पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन्हीं आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर विचार किया गया। आज तक जनता के आन्दोलनों को समाचार-पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन-जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा।
राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय भावना का विकास प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी वाणी के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जनता की शक्ति को आंका साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एकतंत्र होना उचित एवं न्यायसंगत नहीं है। जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान समाचार-पत्रों ने ही बताया। जनता की गरीबी, // भुखमरी, उत्पीड़न एवं रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार-पत्रों ने सहायता की है, समाचार-पत्र शक्ति के साधन रहे, जन-आंदोलन की चिनगारी को प्रज्जवलित करते रहे। यही नहीं जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त कर प्रेस ने अनेक बार युद्ध एवं नर-संहार को होने से बचा लिया, प्रेस पर अत्यधिक भार है। प्रजातंत्र में प्रेस ने भावनाओं, सभ्यताओं का सामंजस्य एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान किया। सभी व्यक्ति संकीर्णता के दायरे से निकल कर परस्पर सहयोग एवं प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़े। ज्ञान वृद्धि के साथ समाचार-पत्रों ने अपनी विवेचना के माध्यम से प्रजातंत्र का मार्गर्दान किया, जीओ और जीने दो के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावना से उपर उठकर अंतरर्राष्ट्रीय भावना लाने में भी प्रेस अग्रणी रहा है। //
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From - RAJAT SONI
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