NEWS PAPER DICTATION #13 (100 Wpm) | REPUBLIC STENOGRAPHY

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 [ --  लाॅकडाउन का सहारा  -- ]


      प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 21 दिन के लाॅकडाउन की मियाद पूरी होने के ठीक 14 घंटे पहले वही किया जिसकी पूरे देश को उम्मीद थी। लाॅकडाउन तीन मई तक बढ़ाने का ऐलान हुआ है तो समझ लेना चाहिए कि कोरोना वायरस से संक्रमण के प्रसार का खतरा अभी बरकरार है। हालांकि संतोष की बात यह है कि समय रहते लाॅकडाउन का पहला चरण शुरू होने के कारण संक्रमितों की संख्या को लेकर भयावह स्थिति आने से टल गई। लेकिन अब भी देश में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। वैसे कहा यह भी जा रहा है कि जांच में तेजी के कारण संक्रमितों की संख्या एकाएक ज्यादा हो गई है। लाॅकडाउन बढ़ाए जाने से लोगों की समस्याएं तो बढ़ेगी ही, इसमें दो राय नहीं है। पिछले 21 दिन से भी करोड़ों देशवासी परेशानियों को इसी उम्मीद में झेल रहे हैं कि जब लाॅकडाउन समाप्त होगा तो इन मुसीबतों से छुटकारा मिल जाएगा। कोरोना संक्रमण जिस भयावह रूप में फैल रहा है उसमें यह सवाल भी उठाना स्वाभाविक है कि क्या महज लाॅकडाउन से ही कोरोना वायरस को हराया जा सकेगा? इसका जवाब शायद ही किसी के पास है। चीन, ईरान, डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के उदाहरण भी सामने हैं जिन्होंने सावधानी बरतते हुए लाॅकडाउन में ढील दी तो फायदे और नुकसान दोनों ही सामने आ गए। समूचे विश्व को कारोना ने बहुत बड़ी आपदा में डाल दिया है। जिन देशों में संक्रमण की रफ्तार जितनी तेज रही, वहां तबाही उतनी ज्यादा हुई। खास तौर से आर्थिक मोर्चे पर।




     यह बात सही है कि भारत में लाॅकडाउन समय रहते शुरू होने से संक्रमितों और मरने वालों की संख्या पर अंकुश लग पाया। पहले चरण में लाॅकडाउन का ऐलान करते वक्त जान है तो जहान है का मंत्र देने के बाद पीएम ने जान भी और जहान भी की बात कही तो इशारा उस ओर भी था कि बहुत ज्यादा समय तक देश की गाड़ी को पटरी से नहीं उतारा जा सकता। शायद इसी लिए 20 अप्रैल के बाद लाॅकडाउन में सशर्त रियायतें देने की बात भी कही गई है। हमें संक्रमण प्रसार के निरोधात्मक उपाय तो सख्ती से लागू करने ही होंगे। दुनिया के दूसरे देशों की तरफ देखें तो फ्रांस, बेल्जियम व अल्जीरिया सरीखे देशों को भी पहले चरण का लाॅकडाउन इसलिए बढ़ाना पड़ा है क्योंकि हालात उनके काबू में नहीं आ पाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन तक कोरोना को स्वाइन फ्लू से भी दस गुना ज्यादा खतरनाक बता चुका है। बहरहाल, लाॅकडाउन अपना काम करेगा लेकिन असल जरूरत सोशल डिस्टेंसिंग की है। यह तब तक हो जब तक कि कोरोना के उपचार का प्रभावी उपाय न तलाश लिया जाए। देश-दुनिया के वैज्ञानिक कोरोना को लेकर शोध में जुटे हैं। सरकारें अपना काम कर रही हैं, लेकिन बडत्री जिम्मेदारी हमारी ही है। अन्यथा सख्ती और ढिलाई के ऐसे ही लंबे दौर से गुजरना पड़ सकता है।

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