Rajasthan High Court Dictation #10 | Republic Stenography [ Today's decatation ]

Rajasthan High Court Dictation #10 | Republic Stenography [ Today's decatation ]




Hindi Translation
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 [ --  Rajasthan High Court Dictation  -- ]


      महोदय, इस धारा के अधीन आदेश किसी अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब वह अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग कर रहा है। जब किसी अपराधी के बारे में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है तब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, उस दशा में जब उस न्यायालय में अपील करने का अधिकार है, अपील किए जाने पर या अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करते हुए ऐसे आदेश को अपास्त कर सकता है और ऐसे अपराधी को उसके बदले में विधि के अनुसार दण्डादेश दे सकता है। परंतु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय इस उपधारा के अधीन उस दण्ड से अधिक दण्ड न देगा, जो उस न्यायालय द्वारा दिया जा सकता था जिसके द्वारा अपराधी दोषसिद्ध किया गया था। धारा 121, 124 और 373 के उपबंध इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में पेश किए गए प्रतिभुओं के बारे में जहां तक हो सके, लागू होंगे।
किसी अपराधी के उपधारा 1 के अधीन छोड़े जाने का निर्देश देने के पूर्व न्यायालय अपना समाधान कर लेगा कि उस अपराधी का या उसके प्रतिभू का यदि कोई हो कोई नियत स्थान या नियमित उपजीविका उस स्थान में है, जिसके संबंध में वह न्यायालय कार्य करता है या जिसमें अपराधी के उस अवधि के दौरान रहने की सम्भाव्यता है, जो शर्तों के पालन के लिए उल्लेखित की गई है।




     यदि उस न्यायालय का जिसने अपराधी को दोषसिद्ध किया है, या उस न्यायालय का, जो अपराधी के संबंध में उसके मूल अपराध के बारे में कार्यवाही कर सकता था, समाधान हो जाता है कि अपराधी अपने मुचलके की शर्तों में से किसी का पालन करने में असफल रहा है, तो वह उसके पकड़े जाने के लिए वारंट जारी कर सकता है। 

जब कोई अपराधी ऐसे किसी वारण्ट पर पकड़ा जाता है तब वह वारण्ट जारी करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष तत्काल लाया जाएगा और वह न्यायालय या तो तब तक के लिए उसे अभिरक्षा में रखे जाने के लिए प्रतिप्रेषित कर सकता है जब तक मामले में सुनवाई न हो, या इस शर्त पर कि वह दण्डादेश के लिए हाजिर होगा, पर्याप्त प्रतिभूति लेकर जमानत मंजूर कर सकता है और ऐसा न्यायालय मामले की सुनवाई के पश्चात् दण्डादेश दे सकता है।

इस धारा की कोई बात, अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 या बालक अधिनियम 1960 या किशोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण या सुधार से संबंधित तत्समय किसी अन्य विधि के उपबंधों पर प्रभाव न डालेगी।


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