Rajasthan High Court Dictation #12 [ 80 Wpm ] [ REPUBLIC STENOGRAPHY ]
Hindi Translation
👇👇
ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में // शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, // उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को // चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
ये ऐसे मामले हैं // जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, // उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी // सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें // और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका // निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों // की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर // समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। // अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो // स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर // समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो // जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज // के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
[ -- Rajasthan High Court Dictation -- ]
70 शब्द प्रतिमिनट
महोदय, सुप्रीम कोर्ट ने सोशल जस्टिस से जुड़े मामलों के लिए एक अलग विशेष बेंच बनाने का फैसला लेकर न्यायपालिका की एक अहम जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। जनहित याचिकाओं की शक्ल में आए ऐसे तमाम माले बाकी हजारों मुकदमों के बीच अलग-अलग बेंचों में लंबित पड़े हैं। अदालत ने महसूस किया कि इन मामलों की बारीकी को समझने और इन्हें जल्दी किसी नतीजे तक पहुचाने के लिए एक खास // सामाजिक दृष्टि की जरूरत है।ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में // शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, // उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को // चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
80 शब्द प्रतिमिनट
महोदय, सुप्रीम कोर्ट ने सोशल जस्टिस से जुड़े मामलों के लिए एक अलग विशेष बेंच बनाने का फैसला लेकर न्यायपालिका की एक अहम जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। जनहित याचिकाओं की शक्ल में आए ऐसे तमाम माले बाकी हजारों मुकदमों के बीच अलग-अलग बेंचों में लंबित पड़े हैं। अदालत ने महसूस किया कि इन मामलों की बारीकी को समझने और इन्हें जल्दी किसी नतीजे तक पहुचाने के लिए एक खास सामाजिक दृष्टि की जरूरत है।ये ऐसे मामले हैं // जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, // उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी // सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
90 शब्द प्रतिमिनट
महोदय, सुप्रीम कोर्ट ने सोशल जस्टिस से जुड़े मामलों के लिए एक अलग विशेष बेंच बनाने का फैसला लेकर न्यायपालिका की एक अहम जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। जनहित याचिकाओं की शक्ल में आए ऐसे तमाम माले बाकी हजारों मुकदमों के बीच अलग-अलग बेंचों में लंबित पड़े हैं। अदालत ने महसूस किया कि इन मामलों की बारीकी को समझने और इन्हें जल्दी किसी नतीजे तक पहुचाने के लिए एक खास सामाजिक दृष्टि की जरूरत है।ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें // और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका // निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों // की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
100 शब्द प्रतिमिनट
महोदय, सुप्रीम कोर्ट ने सोशल जस्टिस से जुड़े मामलों के लिए एक अलग विशेष बेंच बनाने का फैसला लेकर न्यायपालिका की एक अहम जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। जनहित याचिकाओं की शक्ल में आए ऐसे तमाम माले बाकी हजारों मुकदमों के बीच अलग-अलग बेंचों में लंबित पड़े हैं। अदालत ने महसूस किया कि इन मामलों की बारीकी को समझने और इन्हें जल्दी किसी नतीजे तक पहुचाने के लिए एक खास सामाजिक दृष्टि की जरूरत है।ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर // समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। // अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो // स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
120 शब्द प्रतिमिनट
महोदय, सुप्रीम कोर्ट ने सोशल जस्टिस से जुड़े मामलों के लिए एक अलग विशेष बेंच बनाने का फैसला लेकर न्यायपालिका की एक अहम जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। जनहित याचिकाओं की शक्ल में आए ऐसे तमाम माले बाकी हजारों मुकदमों के बीच अलग-अलग बेंचों में लंबित पड़े हैं। अदालत ने महसूस किया कि इन मामलों की बारीकी को समझने और इन्हें जल्दी किसी नतीजे तक पहुचाने के लिए एक खास सामाजिक दृष्टि की जरूरत है।ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितोें और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर // समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो // जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से 65 सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतरित किए जा सकते हैं, जिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।
बहरहाल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंचे कैसी भूमिका निभाती है, यह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमें इस बेंचे के सामने आने वाले हैं, उनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमो इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज // के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवाने, पौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करने, सभी नागरिकों को चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, जिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।
Subscribe Our YouTube channel For More Videos.
👇👇
OR
OR
"REPUBLIC STENOGRAPHY"
Hello Friends. If you want a great success and stay Updated join Our Education Platform for Inspire for Creating a Best Steno Dictations and Outlines that helps You To Achieve Your Gols in Life.
YOUTUBE
FACEBOOK PAGE
TELEGRAM
👇👇
👇👇
( republicsteno. blogspot. com )
Stay Updated.
From - RAJAT SONI
NOTE ::--:: If you have any suggestions then you can write in the comment box below. We will try to bring it in our next video. Your exprience is very useful for us, Please put your thoughts in the comment box below. Thankyou.
REPUBLIC STENOGRAPHY Hindi steno Dictation And Outlines. New Paper steno Dictation, Rajasthan High Court Dictation And Others. Hindi Steno Dictations.


0 Comments
Write What You Need, We Tray to Help You.