Rajasthan High Court Steno Test 01 (75 WPM)

Rajasthan High Court Steno Test 01 (75 WPM)  [ REPUBLIC STENOGRAPHY ]




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 [ --   Rajasthan High Court Steno Test -- ]


  भारत में सर्वप्रथम अंग्रेजों द्वारा चाल्र्सवुड के निर्देश पर दीवानी मामलों के निस्तारण हेतु सिविल प्रक्रिया संहिता, 1859 पारित की गई। 1859 की सिविल प्रक्रिया संहिता के पश्चात् पुनः वर्ष 1877 से 1882 एवं 1908 में संशोधित रूप में सिविल प्रक्रिया संहिता को पारित किया गया। वर्तमान सिविल प्रक्रिया संहिता 1908, 01 जनवरी, 1909 से प्रवर्तित है। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 का अधिनियम क्रमांक 8 है और इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य, नागालैण्ड राज्य एवं जनजाति के क्षेत्रों के अतिरिक्त सम्पूर्ण भारत पर है। किन्तु संहिता के उपबंधों को या उनमें से किसी उपबंधों को सम्पूर्ण नागालैण्ड या ऐसे जनजाति क्षेत्रों या उनमें से किसी क्षेत्रों में लागू करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों द्वारा राजपत्र में अधिसूचना जारी किया जाना अपेक्षित है। संहिता को भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है।


सिविल प्रक्रिया संहिता एवं प्रक्रिया विधि है, जो दीवानी मामलों के निसतारण में न्यायालयों द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया से संबंधित है। प्रक्रिया विधि वह विधि है, जो सारभूत विधि द्वारा निश्चित अधिकारों एवं दायित्वों से उत्पन्न विवादों के निस्तारण हेतु न्यायालय के लिए प्रक्रिया विहित करती है। विषय वस्तु सिविल प्रक्रिया संहिता दो भागों में विभाजित है। प्रथम भाग में कुल 158 धाराएं हैं जबकि द्वितीय भाग अनुसूची से संबंधित हैं जिनमें कुल 51 आदेश तथा उनसे संबंधित नियम दिये गये हैं। संहिता की धाराएं पक्षकारों के सारभूत अधिकारों एवं क्षेत्राधिकार का सृजन करती हैं, जबकि आदेशों एवं नियमों में न्यायालय में संचालित प्रक्रिया का उपबंध है। संहिता में विहित धाराओं में संशोधन की शक्ति संसद एवं राज्यों के विधानमण्डलों को प्राप्त है जबकि आदेशों में संशोधन या परिवर्तन की शक्ति संसद व विधानमण्डलों के अतिरिक्त राज्यों के उच्च न्यायालयों को भी प्राप्त है।




विविल प्रक्रिया संहिता, 1908 चूंकि प्रक्रिया विधि है अतः यह तत्समय लम्बित या भविष्य की कार्यवाहियों पर लागू होती है। इस प्रकार यह संहिता भूतलक्षी प्रभाव नहीं रखती। सिविल प्रक्रिया संहित, 1908 सर्वांगीण भी नहीं है किंतु उन विषयों पर सर्वांगीण है जिनके संबंध में संहिता में उपबंध किए गये हैं। संशोधन सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में सन् 1976, 1999 एवं 2002 में व्यापक संशोधन किये गये हैं। संशोधन अधिनियम, 1999 एवं 2002, 1 जुलाई 2002 में लागू हुआ है।


धारा 26 को दो उपधाराओं में बांट दिया गया है। उपधारा 2 को सशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा जोड़कर यह उपबंधित किया गया है कि हर वाद पत्र में तथ्यों को शपथपत्र द्वारा साबित किया जायेगा। धारा 27 में संशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा जुर्माने की राशि को 500 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये कर दिया गया है। धारा 32 ग समन जारी किए गये व्यक्ति द्वारा उसके व्यतिक्रम के लिए जुर्माने से संबंधित है। 

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