Rajasthan High Court Steno Test 02 ( 70 WPM)

Rajasthan High Court Steno Test 02 ( 70 WPM )  [ REPUBLIC STENOGRAPHY ]




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 [ --   Rajasthan High Court Steno Test -- ]


  महोदय, धारा 58 में संशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा डिक्री के निष्पादन में सिविल कारागार में निरोध के लिए निर्धारित धन सीमा में परिवर्तन किया गया है। अब यदि डिक्री 5000 रुपये से अधिक धनराशि के संदाय के लिए है तो निरोध अवधि अधिकतम 3 माह तक होगी यदि डिक्री 5000 रुपये से अधिक किंतु 2000 रुपये से अधिक की धनराशि के संदाय के लिए है तो निरोध अवधि 6 सप्ताह से अधिक की नहीं होगी। यदि डिक्री 2000 रुपये से अधिक के संदाय के लिए नहीं है तो सिविल कारागार में निरोध नहीं किया जाएगा।

धारा 60 में संशोधन अधिनियम 1999 द्वारा इस धारा के परंतुक में परिवर्तन कर यह उपबंध किया गया है कि भरणपोषण की डिक्री से भिन्न किसी डिक्री के निष्पादन में वेतन का प्रथम 1000 रुपये और बाकी का 2/3 कुर्क और विक्रय नहीं किया जा सकता। धारा 89 को संशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा पुनः अन्तःस्थापित किया गया है। यह धारा न्यायालयों के बाहर विवादों के निपटारे से संबंधित व्यवस्था करती है। धारा 96 की उपधारा 4 में संशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा यह उपबंध किया गया है कि लघुवाद न्यायालयों द्वारा संज्ञेय वाद में किसी डिक्री में अपील, यदि रकम 10000 रुपये से अधिक की नहीं है तो केवल विधि के प्रश्न के संबंध में ही होगी। धारा 39 में संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा उपधारा 4 को अंतःस्थापित किया गया है जिसके अनुसार किसी डिक्री पारित करने वाले न्यायालय को ऐसी डिक्री के निष्पादन में उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं से बाहर किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरूद्ध निष्पादन की शक्ति प्राप्त नहीं है।




धारा 64 में संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा उपधारा 2 अन्तः स्थापित की गयी है। धारा 60 कुर्की के बाद सम्पत्ति के प्राइवेट अंतरण संबंधित उपबंध करती है। धारा 1102 के स्थान पर संशोधन अधिनियम, 1999 एवं 2002 द्वारा यह संशोधन किया गया है कि जहां मूल वाद की विषयवस्तु 25,000 रुपये से अनधिक धन की वसूली के लिए है वहां डिक्री की द्वितीय अपील नहीं होगी। धारा 115 में संशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा परंतुक में संशोधन किया गया है तथा उपधारा 3 में अंतः स्थापित किया गया है, जिसके अनुसार एक न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण किसी वाद या अन्य कार्यवाही के स्थगन के रूप में लागू नहीं होगा सिवाय वहां के जहां ऐसे वाद या अन्य कार्यवाही को उच्च न्यायालय द्वारा स्थगित कर दिया गया है। धारा 148 में संशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा न्यायालयों द्वारा कोई कार्य करने के लिए समय सीमा के अधिकतम 30 दिनों तक बढ़ाने संबंधी प्रावधान किए गए हैं। धारा 95 में संशोधन अधिनियम, 1999 द्वारा अब अपर्याप्त आधारों पर तगिरफ्तार कुर्की या व्यादेश के लिए प्रतिकर के संबंध में धनराशि को बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया है। आदेश 4 वादों का संस्थित किया जाने के नियम 1 में संशोधन किया गया है। आदेश 5 समनों का निकाला जाना और उनकी तामील के नियम में संशोधन किया गया है। वाद की सुनवाई और साक्षियों की परीक्षा नियम 2 में संशोधन किया गया है जिसके द्वारा सभी जरूरी कार्यवाही मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है और उनका काल संग्रह भी किया जा सकता है।  



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From - RAJAT SONI



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