Rajasthan HighCourt Dicatation #09 (75 Wpm) | REPUBLIC STENOGRAPHY

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 [ --  Rajasthan Highcourt Dictation  -- ]


      किसी पुलिस अधिकारी की दृष्टिगोचरता में किसी भी स्थावर लोक सम्पत्ति को हानि पहुंचाने का प्रयत्न किए जाने पर वह उसका यश किसी लोक भूमि-चिह्न या परिवहन के लिए प्रयुक्त अन्य चिह्न हटाए जाने या उसे क्षति पहुंचाए जाने का निवारण करने के लिए अपने ही प्राधिकार से अंतःक्षेप कर सकता है। यदि किसी न्यायिक कार्यवाही को निपटाते हुए निर्णय या अंतिम आदेश देते समय कोई सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट यह राय व्यक्त करता है कि ऐसी कार्यवाही में उपस्थिति होने वाले किसी साक्षी ने जानते हुए या जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य दिया है या इस आशाय से मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है कि ऐसा साक्ष्य ऐसी कार्यवाही में प्रयुक्त किया जाए तो यदि उसका समाधान हो जाता है कि न्यायालय के हित में यह आवश्यक और समाचीन है कि साक्षी का यथास्थिति, मिथ्या साक्ष्य देने या गढ़ने के लिए संक्षेप विचारण किया जाना चाहिए तो वह ऐसे अपराध का संज्ञान कर सकेगा और अपराधी को ऐसा कारण दर्शित करने का कि क्यों न उसे ऐसे अपराध के लिए दण्डित किया जाए उचित अवसर देने के पश्चात ऐसे अपराधी का संक्षेप विचारण कर सकेगा और उसे कारावास से जिसकी अवधि तीन मास की हो सकेगी या जुर्माने से जो कि पांच सौ रुपये तक का हो सकेगा अथवा दोनों से दण्डित कर सकेगा। ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय संक्षिप्त विवरणों के लिए विहित प्रक्रिया का यथासाध्य अनुसरण करेगा।




     जहां न्यायालय इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिए अग्रसर नहीं होता है, वहां इस धारा की कोई बात अपराध के लिए धारा 340 के अधीन परिवाद करने की उस न्यायालय की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी। जहां उपधारा 1 के अधीन किसी कार्यवाही प्रारंभ किए जाने के पश्चात सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्टेट को यह प्रतीत कराया जाता है कि उस निर्णय या आदेश के विरूद्ध जिसमें उस उपधारा में निर्दिष्ट राय अभिव्यक्त की गई है अपील या पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया गया है, वहां वह यथास्थिति अपील या पुनरीक्षण के आवेदन के निपटाए जाने तक आगे की विचारण की कार्यवाहियों को रोक देगा और तब आगे विचारण की कार्यवाहियां अपील या पुनरीक्षण के आवेदन के परिणाम के अनुसार होंगी। जब कोई ऐसा अपराध, जैसा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 175 धारा 178 या धारा 228 में वर्णित है किसी सिविल दण्ड या राजस्व न्यायालय की दृष्टिगोचरता या उपस्थिति में किया जाता है तब न्यायालय अभियुक्त को अभिरक्षा में निरूद्ध कर सकता है और उसी दिन न्यायालय के उठने के पूर्व किसी समय अपराध का संज्ञान कर सकता है और किसी उपधारा को ऐसा कारण दर्शित करने का कि क्यों न उसे इस अपराध में दण्डित किया जाए। तथ्यों को जिनसे अपराध बनता है और अभियुक्त के कथन को इसमें इसके पूर्व उपबंधित प्रकार से अभिलिखित करने के पश्चात, मामला उसका विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के पास भेज सकेगा और ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे व्यक्ति की हाजिरी के लिए प्रतिभूति दी जाने की अपेक्षा कर सकेगा।

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