Rajasthan Patrika Sampadkiya Dictation #03 | REPUBLIC STENO

Rajasthan Patrika Sampadkiya #03 | REPUBLIC STENO




Hindi Translation
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14 अप्रैल के बाद )


  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सही कहा है कि, लाॅकडाउन समाप्त होने के बाद देश में सामान्य जनजीवन के लिए अभी से रणनीति बनाने की जरूरत है। अभी चल रहा लाॅकडाउन 14 अप्रैल को समाप्त होना है। देश में अभी कोरोना का जैसा प्रकोप चल रहा है, उसमें इस बात के आसार कम ही है कि, उस दिन लाॅकडाउन समाप्त हो जाए। जरूरत के हिसाब से वह और बढ़ भी सकता है, लेकिन उसके हटने के बाद सामान्य स्थिति के लिए अभी से रणनीति बनाने में कोई बुराई नहीं है ताकि कोरोना देश में फिर पैर ना पसार पाए। यह इसलिए भी जरूरी है कि, अभी विश्व में जो माहौल है उसमें यह भरोसा करके बिल्कुल नहीं चलना चाहिए कि 14 अप्रैल के बाद यह जानलेवा बीमारी जह से चली जाएगी। अपितु आशंकाएं इस बात की ज्यादा है कि, अमेरिका और पाकिस्तान जैसे अनेक मुल्कों में अभी यह और पैर फैलाएगा। हमारे यहां भी कहीं कम, कहीं ज्यादा इसका असर बना ही रहेगा। प्रश्न यही है कि तब क्या होगा? यह वही प्रश्न है जो अचानक हुए देशव्यापी लाॅकडाउन के बाद 138 करोड़ हिन्दुस्तानियों के सामने खड़ा हो गया था। जान है तो जहान है सोच कर देशवासियों ने एकबारगी तो उसे मान लिया लेकिन बाद में लाखों लोगों सड़कों पर आ गए। उन्हें लगा कि जान तभी बचेगी जब अपने ठिकाने पहुंच जाएंगे। यदि केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इस बारे में पहले सोचा होता तो शायद यह नौबत नहीं आती। 




      ऐसा भी नहीं है कि हमारे यहां सोचने-विचारने वाले मंचों की कोई कमी है। केंद्री मंत्रिपरिषद से लेकर नीति आयोग और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लेकर विभिन्न प्रभावित पक्षों के संगठन, सब इसके उपयुक्त मंच हैं। सब जनता से निर्वाचित भी हैं। फिर निर्णय कोई भी करे उन्हें लागू करने का जिम्मा तो राज्यों का ही है। लाॅकडाउन की घोषणा से पहले शायद इस महामारी के दबाव में हमारी सरकारें, इस प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाई जिसका परिणाम बाद में हुई आपा-धापी में सामने आया। देश के प्रधानमंत्री तक ने तब जनता को हुई परेशानियों के लिए सार्वजनिक माफी मांगी। यही भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। उस प्रक्रिया में सुधार करते हुए जब अब रणनीति बनाने की बात हो रही है तब सभी सम्बंधित को इससे जुड़े बिन्दुओं पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए और यह चर्चा पूरी तरह गैर राजनीतिक होनी चाहिए। अफसोस इस बात का है कि, हमारे राजनीतिक दल और राजनेता बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी करते हैं, लेकिन जब जमीन पर असल काम करते हैं तो उसमें रणनीति से आगे-पीछे एक कदम भी नहीं सोचते। उम्मीद करनी चाहिए कि, आगे की रणनीति की चर्चा खुलकर होगी। दलों को नहीं देश को सामने रख कर होगी। तभी हम देश की जनता, किसान, मजदूर, बेरोजगारी, उद्योग जगत की मंदी, सरकारों के आर्थिक संकट और इस सबके हमारे वैश्विक संबंधों पर पड़ने वाले असर पर सार्थक चर्चा कर पाएंगे। यदि ऐसा नहीं हो पाया तो परिणाम वहीं ढाक के तीन पात रहेंगे जिसकी सजा सारा देश भुगतेगा।

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