Ramdhari Book 2 Dication #06 | REPUBLIC STENO

Ramdhari Book 2 Dication #06 | REPUBLIC STENO




Hindi Translation
👇👇


    [ --   Ramdhari Book 2  -- ]




      महोदय, बहुत बड़ा अंश अनुभव और लोगों की कही-सुनी बातों से, देखे हुए दृश्यों से और कुल तथा समाज की परंपरा से प्राप्त होता है। सिनेमा इस सभी प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति में सहायक हो सकता है, क्योंकि यह मनुष्य की दृश्य और श्रव्य अनुभूतियों के क्षेत्र को बहुत ही बढ़ा सकता है। यह एक साधारण-सी बात है जिसे सभी जानते है कि केवल सुनी-सुनाई बात की अपेक्षा हम पर देखे हुए दृश्य का प्रभाव अधिक पड़ता है और हम यदि सिनेमा द्वारा किसी चीज को देख लेते हैं, तो उसका उतना फल तो नहीं होता जितना स्वयं आंखों द्वारा देखने से मिलता है। उससे तो कहीं अधिक अमिट छाप किसी के सामने किसी दृश्य के वर्णन करने से पड़ती है। मनबहलाव के भी साधन कितने ही प्रकार के होते हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो मनबहलाव के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी होते हैं और इसके विपरीत बुरे संस्कारों का साधन बन जाते हैं। मैं स्वयं यह दावा नहीं कर सकता कि मैंने बहुत-सी फिल्में देखी हैं। सच पूछिए तो मुझे बहुत कम फिल्में देखने का अवसर मिला है। पर मेरे पास जो खबरें पहुंचती हैं,, बहुतेरे विश्वसनीय भाइयों और बहनों द्वारा जो शिकायतें पहुंचती हैं बहुतेरे विश्वसनीय भाइयों और बहनों द्वारा जो शिकायतें पहुंचाई जाती है उनसे मालूम होता है कि बहुतेरी फिल्में दूसरी कोटि की हैं जो शिक्षा अथवा मनबहलाव का साधन न बनकर बुरी वासनाओं को जागृत करती है, विशेषकर युवकों के चरित्र पर बुरा प्रभाव डालती हैं। हो सकता है कि इस प्रकार की फिल्में अधिक लोकप्रिय होती हों, उनके द्वारा अधिक पैसे कमाए जा सकते हों। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि फिल्म-निर्माताओं का काम ऐसी फिल्मों को बनाना है जो लोकप्रिय हों, क्योंकि वे एक प्रकार की मांग को पूरा करती हैं।



      यह भी कहा जा सकता है कि फिल्मों का ध्येय मनबहलाव ही है। उसको तो तभी सफल मानना चाहिए जब फिल्में उन लोगों का मन बहला सकें जिन लोगों के लिए बनाई गई हों। ये सब बातें बहस के रूप में कही जा सकती है, पर मैं चाहूंगा कि कोई भी सिनेमा हो अथवा फिल्म के बनाने वाले हों, वे यदि अपना कर्तव्य समाज-सेवा समझते हैं और उन्हें ऐसा समझना भी चाहिए तो उन सबके लिए ये सब बातें यदि अग्राह्य नहीं तो गौण अवश्य हैं और उनका मुख्य उद्देश्य तो सेवा ही होना चाहिए।

सेवा तभी तक सेवा रहती है, जब तक वह सेव्य का हित करे न कि उसे गिराए। इसलिए मैं चाहूंगा कि फिल्म बनाने वाले इस पर विचार करें कि उनका उद्देश्य क्या है। उद्देश्य सेवा ही होना चाहिए और सेवा के साथ-साथ यदि धनोपार्जन भी हो जाए तो निर्दोष है। यदि धनोपार्जन ही उद्देश्य हो और सेवा न हो, तो वह अग्राह्य होना चाहिए। यदि मनुष्य अपने स्वार्थवश कुछ ऐसा काम करता है जो उसके व्यक्तिगत लाभ के लिए तो ठीक हो पर जिससे समाज को हानि पहुंचती हो, तो उसे रोकना पड़ता है।

Subscribe Our YouTube channel For More Videos.

Reactions

Post a Comment

0 Comments