Ramdhari Gupta Khand 2 Dictation #05 [ 100 WPM ]

Ramdhari Gupta Khand 2 Dictation #05 [ 100 WPM ] [ REPUBLIC STENOGRAPHY ]




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 [ --   Ramdhari Khand 2 Dictation #05   -- ]


   70 शब्द प्रतिमिनट

  महोदय, बच्चों को जो ज्ञान प्राप्त हो वह अनुभव से प्राप्त हो न कि केवल स्मरण शक्ति पर आश्रित रहकर रटाई द्वारा। उन्होंने सोचा था, और उच्चतम शिक्षाशास्त्रियों का भी यही विचार है कि इस प्रकार से प्राप्त ज्ञान बच्चों में जागरूकता, कार्यकुशलता, स्वतंत्र भावना पैदा करता है जो इस जीवन के संग्राम में बहुत सहायक हो सकता है। दूसरा मौलिक विचार उनका यह था कि इस प्रकार की शिक्षा // इस देश के लिए अनुकूल ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। बच्चों से जो कुछ भी काम कराया जाए, वह उत्पादक काम हो और उससे जो कुछ भी पैदा हो उससे शिक्षा का व्यय यदि पूरा-पूरा नहीं तो अधिकांश निकल सके क्योंकि यदि शिक्षा का व्यय दूसरे प्रकार से निकालने का प्रयत्न किया जाएगा तो वह बोझ इतना बड़ा होगा कि शिक्षा सार्वजनिक नहीं बन सकेगी। पिछले वर्षों में जो कुछ // भी विचार किया गया था या प्रयोग करके देखा गया उससे जहां तक मैं समझता हूं वही निष्कर्ष निकाला जा सकता है जो पहले सम्मेलन में हुई बहस से निकाला जा सकता था। हमारे शिक्षाशास्त्रियों ने इस पद्धति की अनुकूलता और श्रेष्ठता तो मान ली थी, पर उनकी दृष्टि में इसके द्वारा शिक्षा का व्यय निकालना असंभव ही नहीं अनुचित भी था। प्रयोग से देखा गया है कि इस पद्धति // की उपयोगिता है और इससे पूरा नहीं तो अधिकांश व्यय निकाला जा सकता हैं यह मैं प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के संबंध में कह रहा हूं।
उच्च कोटि की शिक्षा के संबंध में अभी प्रयोग नहीं के बराबर हुआ है, इसलिए उसके संबंध में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। इतना होते हुए भी हम देखते हैं कि इस पद्धति को उतना प्रोत्साहन नहीं मिला और न इसका उतना // प्रचार ही हुआ जितना होना चाहिए था और जितना स्वराज्य प्रापित के बाद हम कर सकते थे। इसका कारण, जहां तक मैं समझता हूं, यही है कि इसकी उपयोगिता प्रमाणित होने पर भी पुरानी पद्धति पर जो आस्था थी, वह अभी दूर नहीं हुई और इसी कारण शिक्षा के काम में जो व्यक्ति लगे हुए हैं उनका न तो इस ओर ध्यान गया है और न उन्होंने इस विषय पर // गहराई से चिंतन ही किया है।

आज भी हम इतना ही कह सकते हैं कि इस पद्धति का, अभी केवल प्रयोग ही किया जा रहा है। इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम मानकर हमारी सरकार ने उसको चालू करने का निश्चय नहीं किया और क्रियात्मक रूप से कुछ करने की बात तो नहीं के बराबर ही है। उसका परिणाम यह हुआ है कि पुरानी पद्धति की संस्थाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और // शिक्षा पर सरकार जो कुछ भी व्यय कर सकती है या करना चाहती है उसका बहुत बड़ा अंश उस पद्धति को ही बनाए रखने में व्यय हो रहा है और इस पद्धति को बहुत कम प्रोत्साहन मिला है। मेरा अपना विश्वास है कि शिक्षा में मौलिक परिवर्तन अवश्य किया जाएगा।


   80 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, बच्चों को जो ज्ञान प्राप्त हो वह अनुभव से प्राप्त हो न कि केवल स्मरण शक्ति पर आश्रित रहकर रटाई द्वारा। उन्होंने सोचा था, और उच्चतम शिक्षाशास्त्रियों का भी यही विचार है कि इस प्रकार से प्राप्त ज्ञान बच्चों में जागरूकता, कार्यकुशलता, स्वतंत्र भावना पैदा करता है जो इस जीवन के संग्राम में बहुत सहायक हो सकता है। दूसरा मौलिक विचार उनका यह था कि इस प्रकार की शिक्षा इस देश के लिए अनुकूल ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। // बच्चों से जो कुछ भी काम कराया जाए, वह उत्पादक काम हो और उससे जो कुछ भी पैदा हो उससे शिक्षा का व्यय यदि पूरा-पूरा नहीं तो अधिकांश निकल सके क्योंकि यदि शिक्षा का व्यय दूसरे प्रकार से निकालने का प्रयत्न किया जाएगा तो वह बोझ इतना बड़ा होगा कि शिक्षा सार्वजनिक नहीं बन सकेगी। पिछले वर्षों में जो कुछ भी विचार किया गया था या प्रयोग करके देखा गया उससे जहां तक मैं समझता हूं वही निष्कर्ष निकाला जा // सकता है जो पहले सम्मेलन में हुई बहस से निकाला जा सकता था। हमारे शिक्षाशास्त्रियों ने इस पद्धति की अनुकूलता और श्रेष्ठता तो मान ली थी, पर उनकी दृष्टि में इसके द्वारा शिक्षा का व्यय निकालना असंभव ही नहीं अनुचित भी था। प्रयोग से देखा गया है कि इस पद्धति की उपयोगिता है और इससे पूरा नहीं तो अधिकांश व्यय निकाला जा सकता हैं यह मैं प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के संबंध में कह रहा हूं।

उच्च कोटि की शिक्षा // के संबंध में अभी प्रयोग नहीं के बराबर हुआ है, इसलिए उसके संबंध में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। इतना होते हुए भी हम देखते हैं कि इस पद्धति को उतना प्रोत्साहन नहीं मिला और न इसका उतना // प्रचार ही हुआ जितना होना चाहिए था और जितना स्वराज्य प्रापित के बाद हम कर सकते थे। इसका कारण, जहां तक मैं समझता हूं, यही है कि इसकी उपयोगिता प्रमाणित होने पर भी पुरानी पद्धति पर जो आस्था थी, // वह अभी दूर नहीं हुई और इसी कारण शिक्षा के काम में जो व्यक्ति लगे हुए हैं उनका न तो इस ओर ध्यान गया है और न उन्होंने इस विषय पर गहराई से चिंतन ही किया है।

आज भी हम इतना ही कह सकते हैं कि इस पद्धति का, अभी केवल प्रयोग ही किया जा रहा है। इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम मानकर हमारी सरकार ने उसको चालू करने का निश्चय नहीं किया और क्रियात्मक रूप से कुछ करने की बात तो // नहीं के बराबर ही है। उसका परिणाम यह हुआ है कि पुरानी पद्धति की संस्थाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और शिक्षा पर सरकार जो कुछ भी व्यय कर सकती है या करना चाहती है उसका बहुत बड़ा अंश उस पद्धति को ही बनाए रखने में व्यय हो रहा है और इस पद्धति को बहुत कम प्रोत्साहन मिला है। मेरा अपना विश्वास है कि शिक्षा में मौलिक परिवर्तन अवश्य किया जाएगा।




   90 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, बच्चों को जो ज्ञान प्राप्त हो वह अनुभव से प्राप्त हो न कि केवल स्मरण शक्ति पर आश्रित रहकर रटाई द्वारा। उन्होंने सोचा था, और उच्चतम शिक्षाशास्त्रियों का भी यही विचार है कि इस प्रकार से प्राप्त ज्ञान बच्चों में जागरूकता, कार्यकुशलता, स्वतंत्र भावना पैदा करता है जो इस जीवन के संग्राम में बहुत सहायक हो सकता है। दूसरा मौलिक विचार उनका यह था कि इस प्रकार की शिक्षा इस देश के लिए अनुकूल ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। बच्चों से जो कुछ भी काम कराया जाए, वह उत्पादक // काम हो और उससे जो कुछ भी पैदा हो उससे शिक्षा का व्यय यदि पूरा-पूरा नहीं तो अधिकांश निकल सके क्योंकि यदि शिक्षा का व्यय दूसरे प्रकार से निकालने का प्रयत्न किया जाएगा तो वह बोझ इतना बड़ा होगा कि शिक्षा सार्वजनिक नहीं बन सकेगी। पिछले वर्षों में जो कुछ भी विचार किया गया था या प्रयोग करके देखा गया उससे जहां तक मैं समझता हूं वही निष्कर्ष निकाला जा सकता है जो पहले सम्मेलन में हुई बहस से निकाला जा सकता था। हमारे शिक्षाशास्त्रियों ने इस पद्धति की अनुकूलता // और श्रेष्ठता तो मान ली थी, पर उनकी दृष्टि में इसके द्वारा शिक्षा का व्यय निकालना असंभव ही नहीं अनुचित भी था। प्रयोग से देखा गया है कि इस पद्धति की उपयोगिता है और इससे पूरा नहीं तो अधिकांश व्यय निकाला जा सकता हैं यह मैं प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के संबंध में कह रहा हूं।
उच्च कोटि की शिक्षा के संबंध में अभी प्रयोग नहीं के बराबर हुआ है, इसलिए उसके संबंध में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। इतना होते हुए भी हम देखते हैं कि इस // पद्धति को उतना प्रोत्साहन नहीं मिला और न इसका उतना प्रचार ही हुआ जितना होना चाहिए था और जितना स्वराज्य प्रापित के बाद हम कर सकते थे। इसका कारण, जहां तक मैं समझता हूं, यही है कि इसकी उपयोगिता प्रमाणित होने पर भी पुरानी पद्धति पर जो आस्था थी, वह अभी दूर नहीं हुई और इसी कारण शिक्षा के काम में जो व्यक्ति लगे हुए हैं उनका न तो इस ओर ध्यान गया है और न उन्होंने इस विषय पर गहराई से चिंतन ही किया है।

आज भी हम इतना // ही कह सकते हैं कि इस पद्धति का, अभी केवल प्रयोग ही किया जा रहा है। इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम मानकर हमारी सरकार ने उसको चालू करने का निश्चय नहीं किया और क्रियात्मक रूप से कुछ करने की बात तो नहीं के बराबर ही है। उसका परिणाम यह हुआ है कि पुरानी पद्धति की संस्थाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और शिक्षा पर सरकार जो कुछ भी व्यय कर सकती है या करना चाहती है उसका बहुत बड़ा अंश उस पद्धति को ही बनाए रखने में व्यय हो रहा है और // इस पद्धति को बहुत कम प्रोत्साहन मिला है। मेरा अपना विश्वास है कि शिक्षा में मौलिक परिवर्तन अवश्य किया जाएगा।

   100 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, बच्चों को जो ज्ञान प्राप्त हो वह अनुभव से प्राप्त हो न कि केवल स्मरण शक्ति पर आश्रित रहकर रटाई द्वारा। उन्होंने सोचा था, और उच्चतम शिक्षाशास्त्रियों का भी यही विचार है कि इस प्रकार से प्राप्त ज्ञान बच्चों में जागरूकता, कार्यकुशलता, स्वतंत्र भावना पैदा करता है जो इस जीवन के संग्राम में बहुत सहायक हो सकता है। दूसरा मौलिक विचार उनका यह था कि इस प्रकार की शिक्षा इस देश के लिए अनुकूल ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। बच्चों से जो कुछ भी काम कराया जाए, वह उत्पादक काम हो और उससे जो कुछ भी पैदा हो उससे // शिक्षा का व्यय यदि पूरा-पूरा नहीं तो अधिकांश निकल सके क्योंकि यदि शिक्षा का व्यय दूसरे प्रकार से निकालने का प्रयत्न किया जाएगा तो वह बोझ इतना बड़ा होगा कि शिक्षा सार्वजनिक नहीं बन सकेगी। पिछले वर्षों में जो कुछ भी विचार किया गया था या प्रयोग करके देखा गया उससे जहां तक मैं समझता हूं वही निष्कर्ष निकाला जा सकता है जो पहले सम्मेलन में हुई बहस से निकाला जा सकता था। हमारे शिक्षाशास्त्रियों ने इस पद्धति की अनुकूलता और श्रेष्ठता तो मान ली थी, पर उनकी दृष्टि में इसके द्वारा शिक्षा का व्यय निकालना असंभव ही नहीं अनुचित // भी था। प्रयोग से देखा गया है कि इस पद्धति की उपयोगिता है और इससे पूरा नहीं तो अधिकांश व्यय निकाला जा सकता हैं यह मैं प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के संबंध में कह रहा हूं।
उच्च कोटि की शिक्षा के संबंध में अभी प्रयोग नहीं के बराबर हुआ है, इसलिए उसके संबंध में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। इतना होते हुए भी हम देखते हैं कि इस पद्धति को उतना प्रोत्साहन नहीं मिला और न इसका उतना प्रचार ही हुआ जितना होना चाहिए था और जितना स्वराज्य प्रापित के बाद हम कर सकते थे। इसका कारण, जहां // तक मैं समझता हूं, यही है कि इसकी उपयोगिता प्रमाणित होने पर भी पुरानी पद्धति पर जो आस्था थी, वह अभी दूर नहीं हुई और इसी कारण शिक्षा के काम में जो व्यक्ति लगे हुए हैं उनका न तो इस ओर ध्यान गया है और न उन्होंने इस विषय पर गहराई से चिंतन ही किया है।
आज भी हम इतना ही कह सकते हैं कि इस पद्धति का, अभी केवल प्रयोग ही किया जा रहा है। इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम मानकर हमारी सरकार ने उसको चालू करने का निश्चय नहीं किया और क्रियात्मक रूप से कुछ करने की बात तो नहीं // के बराबर ही है। उसका परिणाम यह हुआ है कि पुरानी पद्धति की संस्थाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और शिक्षा पर सरकार जो कुछ भी व्यय कर सकती है या करना चाहती है उसका बहुत बड़ा अंश उस पद्धति को ही बनाए रखने में व्यय हो रहा है और इस पद्धति को बहुत कम प्रोत्साहन मिला है। मेरा अपना विश्वास है कि शिक्षा में मौलिक परिवर्तन अवश्य किया जाएगा।

   120 शब्द प्रतिमिनट

महोदय, बच्चों को जो ज्ञान प्राप्त हो वह अनुभव से प्राप्त हो न कि केवल स्मरण शक्ति पर आश्रित रहकर रटाई द्वारा। उन्होंने सोचा था, और उच्चतम शिक्षाशास्त्रियों का भी यही विचार है कि इस प्रकार से प्राप्त ज्ञान बच्चों में जागरूकता, कार्यकुशलता, स्वतंत्र भावना पैदा करता है जो इस जीवन के संग्राम में बहुत सहायक हो सकता है। दूसरा मौलिक विचार उनका यह था कि इस प्रकार की शिक्षा इस देश के लिए अनुकूल ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। बच्चों से जो कुछ भी काम कराया जाए, वह उत्पादक काम हो और उससे जो कुछ भी पैदा हो उससे शिक्षा का व्यय यदि पूरा-पूरा नहीं तो अधिकांश निकल सके क्योंकि यदि शिक्षा का व्यय दूसरे प्रकार से निकालने का // प्रयत्न किया जाएगा तो वह बोझ इतना बड़ा होगा कि शिक्षा सार्वजनिक नहीं बन सकेगी। पिछले वर्षों में जो कुछ भी विचार किया गया था या प्रयोग करके देखा गया उससे जहां तक मैं समझता हूं वही निष्कर्ष निकाला जा सकता है जो पहले सम्मेलन में हुई बहस से निकाला जा सकता था। हमारे शिक्षाशास्त्रियों ने इस पद्धति की अनुकूलता और श्रेष्ठता तो मान ली थी, पर उनकी दृष्टि में इसके द्वारा शिक्षा का व्यय निकालना असंभव ही नहीं अनुचित भी था। प्रयोग से देखा गया है कि इस पद्धति की उपयोगिता है और इससे पूरा नहीं तो अधिकांश व्यय निकाला जा सकता हैं यह मैं प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के संबंध में कह रहा हूं।
उच्च कोटि की शिक्षा // के संबंध में अभी प्रयोग नहीं के बराबर हुआ है, इसलिए उसके संबंध में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। इतना होते हुए भी हम देखते हैं कि इस पद्धति को उतना प्रोत्साहन नहीं मिला और न इसका उतना प्रचार ही हुआ जितना होना चाहिए था और जितना स्वराज्य प्रापित के बाद हम कर सकते थे। इसका कारण, जहां तक मैं समझता हूं, यही है कि इसकी उपयोगिता प्रमाणित होने पर भी पुरानी पद्धति पर जो आस्था थी, वह अभी दूर नहीं हुई और इसी कारण शिक्षा के काम में जो व्यक्ति लगे हुए हैं उनका न तो इस ओर ध्यान गया है और न उन्होंने इस विषय पर गहराई से चिंतन ही किया है।

आज भी हम // इतना ही कह सकते हैं कि इस पद्धति का, अभी केवल प्रयोग ही किया जा रहा है। इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम मानकर हमारी सरकार ने उसको चालू करने का निश्चय नहीं किया और क्रियात्मक रूप से कुछ करने की बात तो नहीं के बराबर ही है। उसका परिणाम यह हुआ है कि पुरानी पद्धति की संस्थाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और शिक्षा पर सरकार जो कुछ भी व्यय कर सकती है या करना चाहती है उसका बहुत बड़ा अंश उस पद्धति को ही बनाए रखने में व्यय हो रहा है और इस पद्धति को बहुत कम प्रोत्साहन मिला है। मेरा अपना विश्वास है कि शिक्षा में मौलिक परिवर्तन अवश्य किया जाएगा



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From - RAJAT SONI



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